2122 1212 22
देख कर मुस्कुराना शर्माना
इश्क़ समझे न कोई दीवाना
है कयामत हर इक अदा इनकी
जुल्फ़ें बिखराना हो या झटकाना
सिर्फ़ आता है इन हसीनों को
दिल चुराना चुरा के ले जाना
क्यों किसी का यूँ दिल जलाते हो
क्यों बनाते हो यूँ ही दीवाना
कितना मुश्किल है चाहतों में सनम
पास रहकर भी दूर हो जाना
बेक़रारी में आहें भरता है
जी न पाता है कोई दीवाना
साल हा साल लम्हा दर लम्हा
जलता रहता है दिल का वीराना
ज़िंदा रहना हो इक सज़ा जैसे
सांस लेना हो कोई ज़ुर्माना
हमने माना कि दिल है दीवाना
कोई अपना है कोई बेगाना
रात है रात कब गुज़रती है
रोज़ भरते हैं कितना हर्ज़ाना
यक ब यक चौंक जाते हैं अक्सर
देख कर खाली खाली सिरहाना
कोई शम्मा है कोई परवाना
कोई पागल है कोई मस्ताना
हर किसी पर ही इक खुमारी है
हर किसी आँख में है मयखाना
दर्द आकर ठहर सा जाता है
दर्द अपना हो या हो बेगाना
दिल हुआ इश्क़ में तमाम "आज़ी"
फ़िर भी क्यों खूँ चकां है अफ़साना
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Comment
दिल से शुक्रिया गुरु जी दुविधा दूर करने व एक बेहतरीन सुझाव देने के लिए
सहृदय धन्यवाद
'सुर्ख है खूँ चकां है अफ़साना'
इस मिसरे को यूँ कह सकते है:-
'फिर भी क्यों खूँ चुकाँ है अफ़साना'
जी आदरणीय जनाब अमीर जी वैसे तो बात मैंने बिल्कुल सीधी ही लिखने की कोशिश की है की
" इश्क़ में दिल के तमाम होने का अफ़साना सुर्ख है और खून में सना हुआ है "
बाकी तो मुझे भी गुणीजनों की राय की प्रतिक्षा रहेगी
सादर
जनाब आज़ी तमाम साहिब, मिसरे //सुर्ख है खूँ चकां है अफ़सानाा// में दो जगह 'है' होने की वजह से दो वाक्य बन रहे हैं -
1. सुर्ख़ है, 2. ख़ूँ चकाँ है अफ़साना, पहले वाक्य में 'सुर्ख़ है' के बाद 'क्या?' सवाल बनता है, अगर आप यह कहना चाहते हैं कि पहले वाक्य का सम्बन्ध दूसरे वाक्य से ये है कि 'ख़ून से तरबतर अफ़साना लाल है' तो रब्त समझ में आता है, लेकिन क्या ये वाक्य विन्यास सही है इस पर गुणीजनों की राय का इंतज़ार रहेगा। सादर।
दिल हुआ इश्क़ में तमाम का भाव यहाँ दिल की हालत खराब होने से है
इसी दिल की हालत खराब होने के अफ़साने को सुर्ख और खून से सना हुआ बताया गया है इसमें चूँकि दिल का रंग सुर्ख होता है और दिल खून में तर भी होता है तो उसी के अफसाने को सुर्ख और खून से तर बताया गया है
अगर में रब्त समझाने में असमर्थ रहा हूँ तो मेरा नम्बर है 6398099645
//दोनों मिसरों में रब्त नहीं है समझ नहीं आया माफ़ कीजियेगा
यदि आप अपना मोबाइल नंबर दे सकें तो मुझे आसानी होगी समझने और सीखने में आपसे बात करके//
जनाब आज़ी तमाम साहिब दिल बड़ा रखिए, फ़ोन पर बात करके सीखना और सिखाना सिर्फ़ दो लोगों के बीच होगा जबकि इस मंच पर चर्चा करने से सभी सीखने व सिखाने वाले लाभ ले व दे सकते हैं, और इस मंच का उद्देश्य भी यही है।
जनाब, 'सुर्ख है खूँ चकां है अफ़साना' इस मिसरे का कथ्य/भाव क्या है समझ नहीं आया, अगर ये समझ आता तो रब्त भी समझ आता, लेकिन आप तो अपने शे'र का रब्त बख़ूबी जानते ही होंगे, कृपया समझा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी। सादर।
कितना 21/ मुश्किल 22 / है चाहतों 1212/ में सनम 112
सादर प्रणाम आदरणीय अमीर जी
दोनों मिसरों में रब्त नहीं है समझ नहीं आया माफ़ कीजियेगा
यदि आप अपना मोबाइल नंबर दे सकें तो मुझे आसानी होगी समझने और सीखने में आपसे बात करके
धन्यवाद
जनाब आज़ी 'तमाम' साहिब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
'कितना मुश्किल है चाहतों में सनम' इस मिसरे की बह्र चेक कर लें।
'दिल हुआ इश्क़ में तमाम "आज़ी"
'सुर्ख है खूँ चकां है अफ़साना' इस शे'र के मिसरों में रब्त नहीं है, सानी में दो जगह 'है' होने से शिल्प गड़बड़ हो गया है, देखियेग। सादर।
सादर प्रणाम गुरु जी
सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर वक़्त देने के लिये
थोड़ा सा एडिट किया है एक बार फिर से गौर फरमाएं गुरु जी
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