जहाँ पर रोशनी होगी
वहीं पर तीरगी होगी।१।
*
गले तो मौत के लग लें
खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।
*
निशा आयेगी पहलू में
किरण जब सो रही होगी।३।
*
उबासी छोड़ दी उस ने
यहाँ कब ताजगी होगी।४।
*
धुएँ के साथ विष घुलता
हवा भी दिलजली होगी।५।
*
कली जो खिलने बैठी है
मुहब्बत में पगी होगी।६।
*
न आया साँझ को बेटा
निशा भर माँ जगी होगी।७।
मौलिक/अप्रकाशित
- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस खूबसूरत ग़ज़ल की बधाई स्वीकारें।
5 वें शैर का उला और भी खूबसूरत हो सकता है आ धामी सर
सादर
क्या बात है आ धामी सर
सादर प्रणाम
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है
4 शैर बहुत खूबसूरत है पर "यहाँ कब" से शैर इक दायरे में सिमट गया है देखियेगा सर
उबासी छोड़ दी उसने
कहाँ अब ताजगी होगी
सादर
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