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हवा भी दिलजली होगी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२/१२२२


जहाँ पर रोशनी होगी
वहीं पर तीरगी होगी।१।
*
गले तो  मौत  के लग लें
खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।
*
निशा  आयेगी  पहलू  में
किरण जब सो रही होगी।३।
*
उबासी  छोड़  दी  उस ने
यहाँ  कब  ताजगी  होगी।४।
*
धुएँ के साथ विष घुलता
हवा भी दिलजली होगी।५।
*
कली जो खिलने बैठी है
मुहब्बत  में   पगी  होगी।६।
*
न आया  साँझ  को बेटा
निशा भर माँ जगी होगी।७।

मौलिक/अप्रकाशित
- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 19, 2021 at 11:43am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस खूबसूरत ग़ज़ल की बधाई स्वीकारें।

Comment by Aazi Tamaam on May 19, 2021 at 9:57am

5 वें शैर का उला और भी खूबसूरत हो सकता है आ धामी सर

सादर

Comment by Aazi Tamaam on May 19, 2021 at 9:54am

क्या बात है आ धामी सर

सादर प्रणाम

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है

4 शैर बहुत खूबसूरत है  पर "यहाँ कब" से शैर इक दायरे में सिमट गया है देखियेगा सर

उबासी छोड़ दी उसने

कहाँ अब ताजगी होगी

सादर

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