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रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल
केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।
*
मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर
किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।
*
है जानकार जो भी वो पैसों के पीछे बस
जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।
*
चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू
क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।
*
पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है
कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल।५।
*
निष्ठा है जिन की एक पे वो हैं वहीं पड़े
पहुँचे शिखर पे लोग कई रहनुमा बदल।६।
(४-७-२१)
मौलिक /अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
'किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।' इस मिसरे में 'हौसला बदल' शब्द विन्यास खटक रहा है। देखियेगा, सादर।
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