122 2122 2122 2122 2
तेरी तस्वीर होठों से लगा लूँ, जो इजाजत हो।
उसे आगोश में लूँ, चूम डालूँ, जो इजाजत हो।
बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत
तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो ।
नशीले नैन लाली होंठ की यूँ मुझ पे छाई है
इन्हें मैं जाम समझूँ पी लूँ पा लूँ जो इजाजत हो।
वही सुंदर तरासा जिस्म जो एक बार देखा था
उसे फिर यार नैनों में बसा लूँ जो इजाजत हो।
कई नगमे तुम्हारी याद में लिक्खा किया मैंने
उन्हें इक बार स्वर दूँ यार गा लूँ जो इजाजत हो।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष यादव
Comment
आदरणीय श्री सौरभ पांडे सर प्रणाम।
मैं हमेशा आप जैसे गुरुजनों से सीखने के लिए उत्साहित रहता हूं।
इस रचना पर आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत प्रसन्न हुआ है।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
अवश्य, यह मुफाईलुन ही है.
(डबल e)
:-))
//गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है//
जी, 'मफाइलुन' नहीं "मुफ़ाईलुन"1222 :-)))
इस ग़ज़ल के विन्यास को देख कर एकबारगी चकरा ही गया था, भाई अशीष जी.
फिर गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है.
इस प्रयास पर सार्थक चर्चा हो चुकी है जिसके मानी है कि यह प्रस्तति कुछ और समय चाहती है.
शुभातिशुभ
आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर' सर प्रणाम।
आपकी टिप्पणी हमेशा उत्साह बढ़ाने का कार्य करती है। एवं मैं स्वयं को धन्य पाता हूँ।
मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर फरमाते हुए मैंने मूल रचना में सुधार की कोशिश की है एवं कुछ सुझाव ज्यों का त्यों कर लिया है।
सादर
आदरणीय श्री समर कबीर साहब प्रणाम।
आपका मार्गदर्शन हमेशा से ही सुखद अनुभूति रहा है।
कई छोटी छोटी चीजें जो हम गलत कर जाते हैं या उन पर हमारा ध्यान नहीं जाता या हम जल्दबाजी कर जाते हैं तब आपकी सीख मसाल की तरह होती है।
आपका सुझाव ग्रहणीय है।
अन्य रचनाओं पर भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी।
जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है ग़ौर कीजियेगा। सादर।
जनाब आशीष यादव जी आदाब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I
आपने ग़ज़ल के अरकान ग़लत लिखे हैं, इसके दुरुस्त अरकान यूँ हैं :-
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अगर उचित लगे तो रदीफ़ में "जो" की जगह "गर" कर लें, हालाँकि अगर और जो के अर्थ समान ही हैं I
'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत
तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो '
इस मिसरे में 'चूम डालूँ ' शब्द का वाक्य विन्यास ठीक नहीं है , बदलने का प्रयास करें I
'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत
तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो '
इस शे'र के ऊला मिसरे में 'दौलत' शब्द दो बार खटकता है, और ऊला और सानी दोनों मिसरों में 'हुस्न' शब्द दो बार खटकता है, उचित लगे तो इस शे'र को यूँ कहें :-
'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की जानम
इसे आँखों से मैं अपनी चुरालूँ गर इजाज़त हो '
'इन्हें मैं जाम समझूँ पी लूँ पा लूँ जो इजाजत हो'
इस मिसरे के वाक्य विन्यास पर ग़ौर करें i
'वही सुंदर तरासा जिस्म जो एक बार देखा था'
इस मिसरे में 'तरासा' को "तराशा" और 'एक ' को "इक" क्र लें
'कई नगमे तुम्हारी याद में लिक्खा किया मैंने'
इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं, उचित लगे तो यूँ कहें:-
'कई नग़मे तुम्हारी याद में लिक्खे हैं जो मैंने '
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