For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

122  2122  2122  2122  2

तेरी तस्वीर होठों से लगा लूँ, जो इजाजत हो। 

उसे आगोश में लूँ, चूम डालूँ, जो इजाजत हो।

बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत 

तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो ।

नशीले नैन लाली होंठ की यूँ मुझ पे छाई है 

इन्हें मैं जाम समझूँ  पी लूँ पा लूँ जो इजाजत हो। 

वही सुंदर तरासा जिस्म जो एक बार देखा था 

उसे फिर यार नैनों में बसा लूँ जो इजाजत हो। 

कई नगमे तुम्हारी याद में लिक्खा किया मैंने 

उन्हें इक बार स्वर दूँ यार गा लूँ जो इजाजत हो। 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

आशीष यादव

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on November 8, 2021 at 7:35am

आदरणीय श्री सौरभ पांडे सर प्रणाम। 

मैं हमेशा आप जैसे गुरुजनों से सीखने के लिए उत्साहित रहता हूं। 

इस रचना पर आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत प्रसन्न हुआ है।

आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2021 at 7:06pm

अवश्य, यह मुफाईलुन ही है. 

(डबल  e)  

:-))

Comment by Samar kabeer on October 6, 2021 at 5:49pm

//गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है//

जी, 'मफाइलुन' नहीं "मुफ़ाईलुन"1222 :-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2021 at 5:27pm

इस ग़ज़ल के विन्यास को देख कर एकबारगी चकरा ही गया था, भाई अशीष जी. 

फिर गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है. 

इस प्रयास पर सार्थक चर्चा हो चुकी है जिसके मानी है कि यह प्रस्तति कुछ और समय चाहती है. 

शुभातिशुभ

Comment by आशीष यादव on September 29, 2021 at 11:45pm

आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर' सर प्रणाम। 

आपकी टिप्पणी हमेशा उत्साह बढ़ाने का कार्य करती है। एवं मैं स्वयं को धन्य पाता हूँ। 

मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर फरमाते हुए मैंने मूल रचना में सुधार की कोशिश की है एवं कुछ सुझाव ज्यों का त्यों कर लिया है। 

सादर

Comment by आशीष यादव on September 29, 2021 at 11:39pm

आदरणीय श्री समर कबीर साहब प्रणाम। 

आपका मार्गदर्शन हमेशा से ही सुखद अनुभूति रहा है। 

कई छोटी छोटी चीजें जो हम गलत कर जाते हैं या उन पर हमारा ध्यान नहीं जाता या हम जल्दबाजी कर जाते हैं तब आपकी सीख मसाल की तरह होती है। 

आपका सुझाव ग्रहणीय है। 

अन्य रचनाओं पर भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 28, 2021 at 6:06pm

जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है ग़ौर कीजियेगा। सादर।

Comment by Samar kabeer on September 28, 2021 at 4:06pm

जनाब  आशीष यादव जी आदाब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

आपने ग़ज़ल के अरकान ग़लत लिखे हैं, इसके दुरुस्त अरकान यूँ हैं :-

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

अगर उचित लगे तो रदीफ़ में  "जो" की जगह "गर" कर लें, हालाँकि अगर और जो के अर्थ समान ही हैं I 

'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत 

तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत  हो '

इस मिसरे में 'चूम डालूँ ' शब्द का वाक्य विन्यास ठीक नहीं है , बदलने का प्रयास करें I 

'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत 

तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो '

इस शे'र के ऊला मिसरे में 'दौलत' शब्द दो बार खटकता है, और ऊला और सानी दोनों मिसरों में 'हुस्न' शब्द दो बार खटकता है, उचित लगे तो इस शे'र को यूँ कहें :-

'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की जानम 

इसे आँखों से मैं अपनी चुरालूँ गर इजाज़त हो '

'इन्हें मैं जाम समझूँ  पी लूँ पा लूँ जो इजाजत हो'

इस मिसरे के वाक्य विन्यास पर ग़ौर  करें i 

 

'वही सुंदर तरासा जिस्म जो एक बार देखा था'

इस मिसरे में 'तरासा' को "तराशा" और 'एक ' को "इक" क्र लें

'कई नगमे तुम्हारी याद में लिक्खा किया मैंने'

इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं, उचित लगे तो यूँ कहें:-

'कई नग़मे तुम्हारी याद में लिक्खे हैं जो मैंने '

  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
15 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
17 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
23 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।  किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितनेख़मोश रात…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service