For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहो सूरमा! जीत लिए जग?

कहो सूरमा! जीत लिए जग? 

तुम्हें पता है जीत हार का? 

केवल बारूदों के दम पर 

फूँक रहे हो धरती सारी 

नफरत की लपटों में तुमने 

धधकाई करुणा की क्यारी 

कितना आतंकित है जीवन 

हरसू क्रंदन ही क्रंदन है 

मानवता की लाश बिछी है 

सहमा डरा विवश जन-जन है 

तुम कितने खुश हो लहरा कर 

बंदूकें - तलवारें - भाले 

ऐसी विषम घड़ी आई है 

दानवता को कौन सँभाले

किंतु नहीं यह जीत तुम्हारी 

सारी मानवता हारी है 

धर्म-कर्म सब हेय हुए हैं 

गुरुता पर लघुता भारी है

तुमको जिसने आदेश दिया

वह पापी नीच दरिंदा है 

वह लोभी वहशी हीन तुच्छ 

है पर के बिना परिंदा है 

तुमने अंगारों से जिसकी 

खातिर यह दुनिया नापी है 

चाहे अल्लाह-मसीहा हो 

चाहे कि देव हो पापी है 

तुमने जन्नत की चाहत में 

दुनिया नर्क बना डाली है 

ऐसे दुष्कर्मों की मंजिल 

पतित घिनौनी है काली है 

कितने दिन का है यह जीवन 

गिनती के ही कुछ सालों का 

वहशीपन में स्याह किया है 

तुमने मुँह अपने लालों का

दुनिया से जाने वालों में 

कुछ अब तक पूजे जाते हैं 

और वहीं कुछ आतंकी हैं 

आज तलक गाली खाते हैं 

हाँ हिसाब होता है होगा 

जब तुम भी उस तक जाओगे 

बारूदों की खेती वालों 

तब बारूदें ही पाओगे 

पता तुम्हें है जीत हार का? 

भय नफरत का द्वेष प्यार का? 

जाओ पहले पता करो फिर 

पूछो अपने अंतर्मन से 

केवल तन पर राज किया 

जा सकता है खंजर से धन से

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आशीष यादव

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 10, 2021 at 10:34am

बहुत सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय...

Comment by Samar kabeer on September 6, 2021 at 6:33am

जनाब आशीष यादव जी आदाब, अच्छी प्रस्तुति है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Chetan Prakash on September 4, 2021 at 11:32am

अच्छा मर्मभेदी गीत हो सकता था, फिर गोला -बारूद से दुनिया नहीं जीती जा सकती, यह एक सत्य है! करुणा ही मानवता को अक्षुण्ण रख सकती है! 

Comment by आशीष यादव on September 3, 2021 at 11:45am

इस रचना का मर्म समझने एवं हौसला अफजाई करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद श्री Manoj kumar Ahsaas साहब।

Comment by मनोज अहसास on September 2, 2021 at 11:58pm

इस लंबी रचना में आप ने मानवता के जिस पक्ष को उजागर किया है उसके लिए आप हार्दिक बधाई के पात्र हैं सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service