वज़्न-2122 1122 1122 22/112
अज़्म से जो भी समेटेगा हदफ़* के गौहर [ हदफ़ - लक्ष्य
ज़िंदगी में वही पाएगा शरफ़* के गौहर [ शरफ़ - सम्मान
इश्क़ है उनको भी हमसे ये हमें है मालूम
हमने देखे हैं उन आँखों में शग़फ़* के गौहर [शग़फ़ - दिलचस्पी
हाथ में हाथ ले तुमने जो उठाए थे कभी
मेरे दिल में हैं अभी तक वो हलफ़* के गौहर [हलफ़ - क़सम
तुमने दरिया के किनारे जो दिए थे मुझको
अब भी महफ़ूज़ हैं वो सारे ख़ज़फ़* के गौहर [ख़ज़फ़ - पत्थर के टुकड़े
वस्ल के लब पे तबस्सुम की ज़िया देखी तो
कितने बेनूर हुए थे वो सदफ़* के गौहर [सदफ़ - सीप
सादगी इल्म हुनर अज़्म उमीद और हिम्मत
हमने रक्खे हैं क़रीने से सलफ़* के गौहर [सलफ़ - बुज़ुर्ग
’आरज़ू' एक ही ताउम्र बशर ने की है
होश के साथ सलामत रहें दफ़* के गौहर [दफ़ - तेज़ी, जोश
-©अंजुमन 'आरज़ू'✍️
(स्वरचित एवं अप्रकाशित)
Comment
मुह्तरमा अंजुमन मन्सूरी 'आरज़ू' जी आदाब' जैसा कि मुह्तरम समर कबीर साहिब ने बताया कि मुश्किल ज़मीन में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। और एक बात ये कहना चाहता हूँ कि जब / अगर आप ग़ज़ल में कोई तरमीम करने जाएं तो ग़ज़ल के क़वाफ़ी से * मार्क और म'आनी अपनी जगह से हटा दीजिएगा और सभी मुश्किल अल्फ़ाज़ के म'आनी ग़ज़ल के नीचे दर्ज फ़रमा दीजिएगा। इससे नये सीखने वालों को समझने और अपनी टिप्पणी देने में ज़्यादा आसानी होगी। सादर।
मुह्तरमा अंजुमन 'आरज़ू' जी आदाब' ओबीओ पर आपका स्वागत है I
मुश्किल ज़मीन में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है , इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I
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