वज़्न - 22 22 22 22 22 2
उनसे मिलने का हर मंज़र दफ़्न किया
सीप सी आँखों में इक गौहर दफ़्न किया
दिल ने हर पल याद किया है उनको ही
जिनको अक़्ल ने दिल में अक्सर दफ़्न किया
ख़्वाब उनकी क़ुर्बत के टूटे तो हमने
इक तुरबत को घर कहकर घर दफ़्न किया
उनका शाद ख़याल आने पर भी हमने
कब अपने अंदर का मुज़तर दफ़्न किया
मुझमें ज़िंदा हैं मेरे अजदाद सभी
मौत फ़क़त तूने तो पैकर दफ़्न किया
ग़ैर-मुजस्सम है वो तो फिर आज़र ने
पत्थर में क्यों बंदा-परवर दफ़्न किया
पहले दफ़्न 'आरज़ू' दिल की दिल में की
फिर ख़ुद को अपने ही अंदर दफ़्न किया
©अंजुमन 'आरज़ू'
स्वरचित एवं अप्रकाशित
Comment
उस्ताद मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और ख़ूबसूरत इस्लाह करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया, मैं सुधार करती हूं
मुहतरमा अंजुमन आरज़ू साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें I
'मुझमें ज़िंदा हैं मेरे अजदाद सभी ... मरने के बाद भी ? (देव या हमज़ाद की शक्ल में ?) :-))
मौत सुनो तुमने बस पैकर दफ़्न किया'
'पहले दफ़्न 'आरज़ू' दिल की दिल में की'... तख़ल्लुस की वज्ह से मिसरा बेबह्र हो रहा है, शेष समर कबीर साहिब कह ही चुके हैं। सादर।
मुहतरमा अंजुमन `आरज़ू ` जी आदाब , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें I
सीपी-आँखों में इक गौहर दफ़्न किया`--इस मिसरे में उचित लगे तो `सीपी आँखों` की जगह "सीप सी आँखों " कर लें I
`ख़्वाब उनकी क़ुर्बत के टूटे तो हमने
इक तुरबत को घर कहकर घर दफ़्न किया`--इस शे`र के दोनों मिसरों का रब्त मेरी समझ में नहीं आया , क्या कहना चाहती हैं ?
`मौत सुनो तुमने बस पैकर दफ़्न किया`--मौत को `तुम` से सम्बोधित नहीं किया जाता ,उचित लगे तो इस मिसरे कोयुं कह सकती हैं :-
"मौत फ़क़त तूने तो पैकर दफ़्न किया "
`पहले दफ़्न 'आरज़ू' दिल की दिल में की`--इस मिसरे की लय बाधित है , देखिएगा I
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