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ग़ज़ल-ज़माने को बताना चाहे

2122 1122 1122 22 /112

1

शोर धड़कन का ज़माने को बताना चाहे

दिल करीब और करीब यार के आना चाहे

2

दिल की बैचेनी भी अब एक ठिकाना चाहे

थोड़ा ख़ुशियों के समंदर में नहाना चाहे

3

साथ जितना भी लिखा उसने तेरा मेरा सनम

ज़िन्दगी उतनी ही साँसों का तराना चाहे

4

ख़ुशबू बनकर मेरी साँसों में उतरने वाले

क्या तेरा दिल भी महक ऐसी न पाना चाहे

5

चंद अशआर महब्बत प सुना कर यह मन

बीच महफ़िल में तुम्हें अपना बनाना चाहे

6

बात कड़वी है मगर बात है सच्ची "निर्मल"

बेवफ़ा से कोई रिश्ता न निभाना चाहे

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Rachna Bhatia on October 28, 2021 at 10:35am

आदरणीय नीलेश शेवगांवकर जी, ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय:।

आदरणीय, क़रीब यार में वस्ल करने की कोशिश की है।

सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2021 at 8:12am

आ. रचना जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है . बधाई 

दिल करीब और करीब यार के आना चाहे यहाँ करीब यार में मिसरा बेबहर हो रहा है.. देख लें 
सादर 




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