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1
शोर धड़कन का ज़माने को बताना चाहे
दिल करीब और करीब यार के आना चाहे
2
दिल की बैचेनी भी अब एक ठिकाना चाहे
थोड़ा ख़ुशियों के समंदर में नहाना चाहे
3
साथ जितना भी लिखा उसने तेरा मेरा सनम
ज़िन्दगी उतनी ही साँसों का तराना चाहे
4
ख़ुशबू बनकर मेरी साँसों में उतरने वाले
क्या तेरा दिल भी महक ऐसी न पाना चाहे
5
चंद अशआर महब्बत प सुना कर यह मन
बीच महफ़िल में तुम्हें अपना बनाना चाहे
6
बात कड़वी है मगर बात है सच्ची "निर्मल"
बेवफ़ा से कोई रिश्ता न निभाना चाहे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीलेश शेवगांवकर जी, ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय:।
आदरणीय, क़रीब यार में वस्ल करने की कोशिश की है।
सादर।
आ. रचना जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है . बधाई
दिल करीब और करीब यार के आना चाहे यहाँ करीब यार में मिसरा बेबहर हो रहा है.. देख लें
सादर
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