For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-घर बसाना था

2122 / 1212 / 22



1

दिल का रिश्ता यूँ भी निभाना था

फिर से रूठा ख़ुदा मनाना था

2

चार ईंटें टिका के निस्बत की

आदमीयत का घर बसाना था

3

हम वही शाख़ काट बैठे हैं

जिस प अपना भी आशियाना था

4

छोड़ कर गाँव शह्र में उसने

ढूँढना फिर से आब ओ दाना था

5

उसका बेख़ौफ़ होना कहता है

रखता अंदाज़ काफ़िराना था

6

बाद मुद्दत के जान पाए हम

दिल भी उसके लिए खिलौना था

7

क्यों उसी वक़्त आ गये आँसू

जिस घड़ी हमको मुस्कुराना था

8

खेलकर बाज़ी इश्क़ की 'निर्मल'

अपनी किस्मत को आज़माना था

 

मौलिक व अप्रकाशित

रचना निर्मल

Views: 461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on October 14, 2021 at 6:58am

आद0 रचना भाटिया जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। आद0 समर साहब की इस्लाह से और निखर गयी। बधाई निवेदित करता हूँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2021 at 9:43am

वाह उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीया...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2021 at 10:35pm

आ. रचना बहन , सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई। आ. भाई समर जी की सलाह से यह और बेहतर हो जायेगी 

Comment by Rachna Bhatia on October 3, 2021 at 7:51pm

आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी हौसला बढ़ाने के लिए आभार।

Comment by Rachna Bhatia on October 3, 2021 at 7:49pm

आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। सर्, आपने मतला बहुत ख़ूब कर दिया। आभार।

बाकी आपके द्वारा बताए गई इस्लाह के अनुसार सुधार कर के आपको दिखाती हूँ।

सादर।

Comment by Samar kabeer on October 3, 2021 at 4:11pm

मुह्तरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'फिर से रूठा ख़ुदा मनाना था' 

इस मिसरे को यूँ कह सकती हैं :-

' हमको रूठा ख़ुदा मनाना था '

'छोड़ कर गाँव शह्र में उसने

ढूँढना फिर से आब ओ दाना था '

इस शे`र का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ' देखें I 

'उसका बेख़ौफ़ होना कहता है

रखता अंदाज़ काफ़िराना था'

इस शै`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है' देखें I

'बाद मुद्दत के जान पाए हम

दिल भी उसके लिए खिलौना था '

इस शे`र में क़ाफ़िया दोष है, देखें I 

'अपनी किस्मत को आज़माना था'

किस्मत ----"क़िस्मत"

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service