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कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का
वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का
सुधार
नज़र से महब्बत जताना किसी का
हँसाना किसी का रुलाना किसी का
भुलाओगे कैसे सताना किसी का
नहीं रोक पाई कभी चाहकर मैं
दबे पा ख़यालों में आना किसी का
है यह भी महब्बत का दस्तूर यारो
न दिल भूले जो दिल से जाना किसी का
बहुत कोशिशें कीं मनाने की फ़िर भी
न मुमकिन हुआ लौट आना किसी का
दिल ए बेक़रारी की हद ही तो थी वह
जो समझे नहीं हम बहाना किसी का
नहीं रास आया ज़माने को "निर्मल"
मेरे दिल को अपना बताना किसी का
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
Comment
सुधार में ये लिखने की ज़रूरत नहीं कि किसके कहने पर किया गया, सिर्फ़ एडिट करना है, इनवर्टेड कामा भी हटाएँ, फिर से एडिट करें ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई, संज्ञान के लिए बहुत धन्यवाद। सुधार हो गया।
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी आपकी बात से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ पर, मुझे एडिटिंग का आप्शन नहीं दिख रहा। पिछली बार कोशिश की थी तो पोस्ट ही डीलीट हो गई थी। फ़िर भी कोशिश करती हूँ। सादर।
//सर जी, फेयर में सुधार कर लेती हूँ।//
मुहतरमा रचना भाटिया जी, आप अक्सर ऐसा ही कहते हैं... फेयर में सुधार... ठीक है, लेकिन क्या ओ बी ओ पर ये रचना ऐसे ही त्रुटिपूर्ण ही रहेगी? ज़रा सोचें।
मेरे विचार से ओ बी ओ पर भी आपको अपनी रचनाओं में आवश्यक और वांछित परिमार्जन ज़रूर करना चाहिए, ताकि यहाँ आपकी रचनाओं को देखने-समझने वाले भ्रमित न हों। सादर।
आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।सर्, जी, फेयर में सुधार कर लेती हूँ।
सादर।
'नज़र से महब्बत जताना किसी का'
ठीक है ।
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रिय:।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रिय:।
आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।
//वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का ....इज़हार और जताना एक ही वंश के शब्द हैं, लगभग पर्यायवाची //
सहमत ।
सर्, क्या इस तरह सानी कर दूँ?
"नज़र से महब्बत जताना किसी का"
आ.रचना बहन सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई ।
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