For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-रख क़दम सँभल के

1121 2122 1121 2122 

इस्लाह के बाद ग़ज़ल

  

1

है ये इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के

चला जाएगा वगरना तेरा चैन इस प चल के

2

न ज़ुबान से मुकरना न क़रार तू भुलाना

कि मैं ख़्वाब देखती हूँ तेरे साथ अपने कल के

3

किया आइना शराफ़त का जो तुमने सम्त मेरी

उसे यार देख लेना कभी ख़ुद भी रुख़ बदल के

4

शब-ए-वस्ल पर न बरसें कहीं सरकशी के बादल

तू हवा उड़ा के लेजा ये फ़िराक़ के धुँधलके

5

नहीं शम्स का उजाला न क़मर की रौशनी है

कहाँ जाएँगे बता हम तेरी बज़्म से निकल के

6

नहीं रोकना क़दम तू कभी वहशियों से डर कर

वो रुकेंगे ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

रचना निर्मल

 

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on December 22, 2021 at 12:34pm

आदरणीय समर कबीर सर्, ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह करने के लिए बेहद शुक्रिय: । सर्,आपकी इस्लाह से ग़ज़ल सँवर गई। हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on December 21, 2021 at 8:28pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'वो पहन के पा में पायल गए क्या ज़रा सा चल के

कई जाम अपने हाथों से शराब के थे छलके'

ये मतला मुझे भर्ती का लगा ।

उ'से तुम भी देख लेना कभी यार रुख़ बदल के'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, उचित लगे तो यूँ कहें:-

'उसे यार देख लेना कभी ख़ुद भी रुख़ बदल के'

'कहीं वस्ल पर न बरसे आ के अब्र सरकशी का 

ऐ हवा उड़ा ले जा तू ही फ़िराक़ के धुँधलके'

इस शैर का ऊला कमज़ोर है,और सानी मिसरे में 'ऐ' को 1 पर लेना उचित नहीं,यूँ कह सकती हैं:-

'शब-ए-वस्ल पर न बरसें कहीं सरकशी के बादल

तू हवा उड़ा के लेजा ये फ़िराक़ के धुँधलके'

6

'न है शम्स का उजाला न ही रात का अँधेरा

न पता कहाँ को पहुँचेंगे यहाँ से हम निकल के'

इस शैर को यूँ कहा जा सकता है:-

'नहीं शम्स का उजाला न क़मर की रौशनी है

कहाँ जाएँगे बता हम तेरी बज़्म से निकल के'

'नहीं रोकना क़दम तूँ कभी वहशियों से डर कर

वो रुकेगा ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के'

इस शैर में शुतर गुरबा ऐब है,यूँ कह सकती हैं;-

'नहीं रोकना क़दम तू कभी वहशियों से डर कर

वो रुकेंगे ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2021 at 10:05am
नमस्ते जी, बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 12, 2021 at 11:36pm

//किस किस मिसरअ को ठीक करना है यह बता दें सुधारने में आसानी होगी।//

वैसे मैं इस लायक़ तो नहीं हूँ लेकिन आपने आग्रह किया है तो बताने की कोशिश करता हूँ। सादर।

1

है ये इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के         मतले का शिल्प कमज़ोर है, ऊला में "है ये" को "ये है" करना बहतर होगा, 

चला जाएगा वगरना तेरा चैन इस प चल के            सानी मिसरे का शिल्प और भाव स्पष्ट किये जाने की ज़रूरत है। 

2

वो पहन के पा में पायल गए क्या ज़रा सा चल के     मिसरों में रब्त स्पष्ट नहीं है, "पा में" भर्ती के शब्द हैं, इसकी जगह "आज" 

कई जाम अपने हाथों से शराब के थे छलके             कर सकते हैं। सानी मिसरे का शिल्प कसावट चाहता है। 

3

न ज़ुबान से मुकरना न क़रार तू भुलाना.                  इस शे'र के ऊला को यूँ कर सकते हैं- "मेरा साथ देने वाले न क़रार तोड़ देना 

कि मैं ख़्वाब देखती हूँ तेरे साथ अपने कल के          सानी में 'कि मैं' की जगह  'बड़े' करना उचित होगा।                             

4

किया आइना शराफ़त का जो तुमने सम्त मेरी          बहुत ख़ूब। 

उसे तुम भी देख लेना कभी यार रुख़ बदल के          "ख़ुद" 

5

कहीं वस्ल पर न बरसे आ के अब्र सरकशी का     दोनों मिसरों के उत्तरार्द्ध के शिल्प और वाक्य विन्यास

ऐ हवा उड़ा ले जा तू ही फ़िराक़ के धुँधलके          और 'आ के' व 'ही' में मात्रा पतन ठीक नहीं हैं। 

6

न है शम्स का उजाला न ही रात का अँधेरा.             ये शे'र भर्ती का है, शिल्प और कथ्य भी स्पष्ट नहीं है। 

न पता कहाँ को पहुँचेंगे यहाँ से हम निकल के

7

नहीं रोकना क़दम तूँ कभी वहशियों से डर कर.         इस शे'र में शुतरगुर्बा ऐब है   'तूँ' को 'तू' कर लें। 

वो रुकेगा ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के

Comment by Rachna Bhatia on December 12, 2021 at 8:23pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय: । आदरणीय, किस किस मिसरअ को ठीक करना है यह बता दें सुधारने में आसानी होगी।

सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 12, 2021 at 3:10pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, ग़ज़ल अभी मेहनत चाहती है, बहरहाल प्रयास के लिए आपको बधाई। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
5 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service