For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल : गजल-गीत संवेदना के हैं जाये // सौरभ

122   122   122   122 

  
रजाई में दुबके, कहे सुन छमाछम..
किचन तक गयी धूप जाड़े की पुरनम
 
चकित चौंक उठतीं नवोढ़ा की आँखें
मुई चूड़ियो मत उठा शोर मद्धम
 
तुम्हीं को मुबारक जो ठानी है कुट्टी
नजर तो नजर से उठाती है सरगम
 
गजल-गीत संवेदना के हैं जाये
रखें हौसला पर जमाने का कायम
 
भरी जेब, निश्चिंतता हो मुखर तो
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
 
निराला जो ताना, तो बाना गजब का
नए नाम-यश का उड़ाना है परचम
 
रिसालों में तिकड़म से फोटू छपा कर
बजा गाल ’सौरभ’ कहे.. ’बस हमीं हम’
***
मौलिक और अप्रकाशित 

 

नवोढ़ा - नई दुल्हन 

Views: 487

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 12, 2022 at 4:04pm

भाई मनोज अहसास जी, 

//आपने इस ग़ज़ल में नुक्तों पर ध्यान नहीं दिया या किसी कारण से नुक्ते छोड़ दिये //

मैं हिंदी भाषा में देवनागरी लिपि के माध्यम से रचनाकर्म करता हूँ, जहाँ नुख्तों की न तो बाध्यता है, न ही आवश्यकता.

अतः यह बिन्दु रचनाकर्म के क्रम में मेरे लिए गौण है. भावबोध के संप्रेषण के लिए प्रयुक्त माध्यम में उसकी सीमाओं के पार जाकर किसी बाध्यता को मैं अनावश्यक ही मानता हूँ.

अब कोई पाठक शाब्दिक हुए भावबोध को उसमें  मात्र नुख्ता के न होने के कारण उसे खारिज करता है, तो उसकी पाठकीयता और ततस्थता पर संदेह होना लाजिमी है. 

//... मुई चूड़ियों मत उठा शोर मद्धम ... ये वाक्य क्या व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध नहीं हो गया है//

आप उस बिन्दु का संदर्भ तो दें जिसके कारण यह पंक्ति व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध हो या प्रतीत हो रहा हो. 

सर्वोपरि, प्रयुक्त शब्द चुड़ियो है न कि चुड़ियों, जैसा कि आपने लिखा है. ऐसा इसलिए कि चुड़ियों को सम्बोधित किया जा रहा है. 

//इस ग़ज़ल की हार्दिक बधाई //

हार्दिक धन्यवाद. 

वस्तुतः चर्चा प्रस्तुति पर होनी चाहिए न कि बनावटी बाध्यताओं पर. 

 

शुभातिशुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 12, 2022 at 3:52pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by मनोज अहसास on January 12, 2022 at 12:30am

आदरणीय सर सादर नमस्कार

एक नवीन प्रयोग सी इस ग़ज़ल की हार्दिक बधाई

दो बातें सादर निवेदित है 

पहली ऐसा लगता है आपने इस ग़ज़ल में नुक्तों पर ध्यान नहीं दिया या किसी कारण से नुक्ते छोड़ दिये 

दूसरी मुई चूड़ियों मत उठा शोर मद्धम

ये वाक्य क्या व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध नहीं हो गया है

मार्गदर्शन सादर निवेदित है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2022 at 2:29pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service