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ज़ुल्फ़ों को ज़ंजीर बना कर बैठ गए
किस किस को हम पीर बना कर बैठ गए.
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यादें हम से छीन के कोई दिखलाओ
लो हम तो जागीर बना कर बैठ गए.
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दुनिया की तस्वीर बनानी थी हम को
हम तेरी तस्वीर बना कर बैठ गए.
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मौक़ा रख कर भेजा था नाकामी में
आप जिसे तक़दीर बना कर बैठ गए.
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मैंने कॉपी में इक चिड़िया क्या मांडी
दुनिया वाले तीर बना कर बैठ गए.
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चलती फिरती मूरत देख के हम नादाँ
मंदिर की तामीर बना कर बैठ गए.
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हँसते हँसते मेरी कब्र पे आए फिर
वो चेहरा गम्भीर बना कर बैठ गए.
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वो जो मुआफ़ी-नामे लिखता रहता था
आप उसे ही वीर बना कर बैठ गए.
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निलेश 'नूर'
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद . आ. सालिक जी
आदरणीय भाई Nilesh Shevgaonkar जी
सादर अभिवादन
बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है ,शैर दर शैर दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें।
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