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शिवमय दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

भीम, महेश्वर,  शम्भवे,  शंकर,  भोलेनाथ
गंगाधर, श्रीकण्ठ का, सबके सिर पर हाथ।१।
*
गिरिश, कपाली, शर्व ही, शिवाप्रिय, त्रिलोकेश
कृत्तिवासा, शितिकण्ठ का, हिममय है परिवेश।२।
*
वो सर्वज्ञ, परमात्मा, अनीश्वर, त्रयीमूर्ति
हवि,यज्ञमय, सोम हैं, करते इच्छा पूर्ति।३।
*
शूलपाणी , खटवांगी , विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट
भक्तवत्सल,  वृषांक  उग्र,  करते  हरण अनिष्ट।४।
*
तारक,  परमेश्वर,  अनघ,  हिरण्यरेता,  गणनाथ
शशि को धर शशिधर हुए, शुद्धविग्रह निज माथ।५।
*
प्रजापति, वामदेव ही, कपर्दी, विरूपाक्ष,
सुरसूदन, श्रीकण्ठ दें,  कामारी के साक्ष।६।
*
भुजंगभूषण, भर्ग,  भव, पुराराति, भगवान
गिरिधन्वा, गिरिप्रिय हुए, नीलकंठ विषपान।७।
*
रुद्र,मृड,भगनेत्रभिद् , वो अव्यग्र महादेव
पाशविमोचन, देव, हरि, कष्ट हरें स्वयमेव।८।
*
स्थाणु, दिगम्बर,भूतपति, अहिर्बुध्न्य, अष्टमूर्ति
शाश्वत, अज, खण्डपरशु, करते सब की पूर्ति।९।
*
सहस्राक्ष, सहस्रपाद जो, अपवर्गप्रद, अनन्त
पूषदन्तभित् ,  हर  वही, करें  पाप का अन्त।१०।
*
मृगपाणी, त्रिपुरान्तक, जटाधर, व्योमकेश
सदाशिव, परशुहस्त ने, धरे नित्य नव वेश।११।
*
कैलाशवासी, कवची, कृपानिधि, कालकाल
पिनाकी, ललाटाक्ष नित, जग को रहे सभाल।१२।
*
सामप्रिय  जो  स्वरमयी,  वृषभारूढ़,  कठोर
दक्षाध्वरहर, सात्विक अव्यग्र, रहते आत्मविभोर।१३।
*
विश्वेश्वर, अनेकात्मा, वीरभद्र जो गिरीश
पंचवक्त्र, दुर्धर्ष को, नमन करो नत शीश।१४।
*
शाश्वत, अव्यय, जगद्गुरू, वही अंबिकानाथ
पशुपति,  अष्टमूर्ति  अज, सब का  देते  साथ।१५।
*
जपे एक सौ आठ जो, पशुपति शिव के नाम
शशिशेखर, शम्भू  करें, सफल  सकारे काम।१६।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
( नोट- इन दोहों में महादेव के १०८ नामों को पिरोने का प्रयास किया है। )

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