भीम, महेश्वर, शम्भवे, शंकर, भोलेनाथ
गंगाधर, श्रीकण्ठ का, सबके सिर पर हाथ।१।
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गिरिश, कपाली, शर्व ही, शिवाप्रिय, त्रिलोकेश
कृत्तिवासा, शितिकण्ठ का, हिममय है परिवेश।२।
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वो सर्वज्ञ, परमात्मा, अनीश्वर, त्रयीमूर्ति
हवि,यज्ञमय, सोम हैं, करते इच्छा पूर्ति।३।
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शूलपाणी , खटवांगी , विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट
भक्तवत्सल, वृषांक उग्र, करते हरण अनिष्ट।४।
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तारक, परमेश्वर, अनघ, हिरण्यरेता, गणनाथ
शशि को धर शशिधर हुए, शुद्धविग्रह निज माथ।५।
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प्रजापति, वामदेव ही, कपर्दी, विरूपाक्ष,
सुरसूदन, श्रीकण्ठ दें, कामारी के साक्ष।६।
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भुजंगभूषण, भर्ग, भव, पुराराति, भगवान
गिरिधन्वा, गिरिप्रिय हुए, नीलकंठ विषपान।७।
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रुद्र,मृड,भगनेत्रभिद् , वो अव्यग्र महादेव
पाशविमोचन, देव, हरि, कष्ट हरें स्वयमेव।८।
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स्थाणु, दिगम्बर,भूतपति, अहिर्बुध्न्य, अष्टमूर्ति
शाश्वत, अज, खण्डपरशु, करते सब की पूर्ति।९।
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सहस्राक्ष, सहस्रपाद जो, अपवर्गप्रद, अनन्त
पूषदन्तभित् , हर वही, करें पाप का अन्त।१०।
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मृगपाणी, त्रिपुरान्तक, जटाधर, व्योमकेश
सदाशिव, परशुहस्त ने, धरे नित्य नव वेश।११।
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कैलाशवासी, कवची, कृपानिधि, कालकाल
पिनाकी, ललाटाक्ष नित, जग को रहे सभाल।१२।
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सामप्रिय जो स्वरमयी, वृषभारूढ़, कठोर
दक्षाध्वरहर, सात्विक अव्यग्र, रहते आत्मविभोर।१३।
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विश्वेश्वर, अनेकात्मा, वीरभद्र जो गिरीश
पंचवक्त्र, दुर्धर्ष को, नमन करो नत शीश।१४।
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शाश्वत, अव्यय, जगद्गुरू, वही अंबिकानाथ
पशुपति, अष्टमूर्ति अज, सब का देते साथ।१५।
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जपे एक सौ आठ जो, पशुपति शिव के नाम
शशिशेखर, शम्भू करें, सफल सकारे काम।१६।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
( नोट- इन दोहों में महादेव के १०८ नामों को पिरोने का प्रयास किया है। )
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