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होली मुक्तक ( सरसी छंद ) .....

होली मुक्तक  (सरसी छंद )......

बार - बार पिचकारी ताने, मारे भर -भर  रंग ।
भीगी  मोरी  अँगिया  चोली , भीगे  सारे अंग ।
मार शरम के मर-मर जाऊँ,लाल हो गए गाल -
बेदर्दी को  लाज न  आवे, छेड़े  पी  कर  भंग ।

---------------------------------------------------------

जुल्मी कितना जुल्म करे है, देखो पी कर भंग ।
मदहोशी में  रंग  लगावे , खूब  करे  फिर  तंग ।
अंग- अंग से छेड़ करे वो,तनिक न आवे लाज -
बार - बार  वो  रंग लगावे , खूब  करे  हुडदंग  ।

सुशील सरना / 15-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on March 18, 2022 at 1:21pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । आपकी समीक्षा सदा मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत रही है ।जो सीखा आप जैसे गुणीजनों से सीखा है
मार्गदर्शन के लिए दिल से आभार आदरणीय जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 17, 2022 at 10:46pm

फागुनी मुक्तक अपनी तासीर में फड़कते हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना जी. मेरी हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें. 

मैं आपके छंदबद्ध रचनाओं से कितना अभिभूत रहता हूँ, इसे आप अवश्य समझते होंगे. आपने वस्तुत: सतत दीर्घकालीन अभ्यास किया है, जिसका प्रतिफल सबके समक्ष है. 

बार-बार पिचकारी ताने (मोहे), मारे भर -भर  रंग ..,  तथा,

मार शरम के मर-मर जाऊँ, लाल हो गए गाल 

उपर्युक्त दोनों पदों पर आपका ध्यान चाहूँगा. आपको गेयता में स्पष्ट अंतर महसूस होगा. 

इन मुक्तकों के लिए पुन: हार्दिक बधाई.

शुभातिशुभ

Comment by Sushil Sarna on March 17, 2022 at 2:57pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर । होली मुबारक हो सर ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 17, 2022 at 7:36am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। होली पर सुंदर छन्द हुए हैं । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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