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मैं जहाँ पर खड़ा हूँ

वहाँ से हर मोड़ दिखता है

इस जहाँ से उस जहाँ का

हरेक छोर दिखता है 

ये वो किनारा है जहां

सब खत्म हुआ समझो

सभी भावनाओं का जैसे

अब अंत हुआ समझो

दर्द मुझे है बहुत मगर

अब उसका कोई इलाज नहीं

मैं ना लगूँ खुश मगर,

मैं किसी से नाराज़ नहीं

मैंने देखा है खुदको उसकी

आँखों मे कई दफा बुझते हुए

उसने ये सब सहा है,

हर बार मगर हँसते हुए

आज नहीं तो कल

खत्म होनी ये कहानी है  

है सभी को अब बताना

जो मेरी अनसुनी कहानी है

ये है वो रास्ता के इसपर

जब भी जो भी चला है

अंतिम सफर के मंज़िल से

अंत मे वो जा मिला है

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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