अपनी अपनी खुशी
ऊँचका घर यानि बाबा घर में लंबी प्रतीक्षा के बाद पोता हुआ है।पोतियाँ पहले से हैं। परिवार के कुछ लोग शहर से आए हैं। मिठाइयाँ बंट रही हैं। मुहल्ले के लोग मिठाई खाते,खुशी का इजहार करते। कोई कहता, ‘बस यही कमी थी। भगवान ने सुन ली।’
‘ऊपरवाले के घर देर है,अँधेर नहीं।मेरा आशीष फल गया।’ खुश होकर वीरू की भौजाई बोली।उसे तो मिठाई के साथ कुछ रुपये भी मिले हैं। गिने-चुने लोगों ने परिवार में पोता होने की दुआ की थी,उनमें से वह भी एक है। जो लोग कभी इधर नहीं आते थे, उनमें से भी कुछ लोग दरवाजे पर आकर बधाई देकर, मिठाई खाकर गए हैं। पर, अपनी खास पड़ोस में कोई हलचल, कोई उछाह नहीं है। कल तक वे लोग मिलते थे, हँस-हँसकर बातें करते थे। आज पीठ दिखाते निकाल जाते हैं। मुँह से बोल क्या फूटें,चेहरे तक मुरझाए हुए हैं।
बड़े बाबा छोटे बाबा से पूछते है, ‘क्या हुआ? ये सब कटे-कटे क्यूँ रहते हैं?’
‘इनकी मत पूछिए। जब से बाबुल के आने की खबर हुई है, सब सूख गए हैं। लगता है, पाला के मारे हुए हैं सब।’
‘हाँ। कल शाम को उनके बड़कू भाई आए थे,बुलाने पर ही। उन्होने भी बस इधर-उधर की बातें की।कुछ खुशी वगैरह नहीं जता पाये।’
‘उनकी पत्नी तो बाबुल की चाची से खोज-खोजकर बातें करती थीं। इस खबर के बाद मुँह फिराकर चलती हैं।जाने क्या दुख है इनलोगों को।’ छोटे बाबा जी बोले।
‘अच्छा।’
‘बूढ़ी रउताइन कहती थीं कि जब हमलोगों के बाबा पीलिया के शिकार हुए थे, तो इनके पूर्वजों ने दवा-इलाज कराने से मुँह मोड़ लिये थे। सब लोग साथ थे। वे लोग ही मालिक थे। सोचते थे कि नहीं रहेंगे, तो वंश डूब जाएगा। सारी मिल्कियत के मालिक बन जाएंगे।बड़े स्वार्थी हैं सब।ईर्ष्यालु भी। ’ छोटे बाबा बोलते गए।
‘सो तो है।’
‘और तब इनके पूर्वज लोग खूब खुश थे कि पीलिया से भला कोई बचा है? फिर इधर, कहते फिरते थे कि इन लोगों को बस पोतियाँ हैं........बेटियाँ इनके लिये महत्व नहीं रखतीं। अब मिर्ची लगी है।’ छोटकू गुस्सैल अंदाज में बोले।
‘वे भी खुश हैं।’ बड़े बाबा बोले।
‘कैसे भइया?’
‘कुछ लोग औरों की खुशी में शामिल होकर खुश होते हैं, कुछ दुखी होकर।’
‘हाहाहा ....हेहेहे .... ।’ कुछ देर तक दरवाजे पर यही स्वर गूँजता रहा।
Comment
आदरणीय लक्ष्मण भाई जी,आपका आभार ।
आदरणीय महेंद्र जी,आपका आभार ।
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
अच्छी लघुकथा है आदरणीय मनन जी। हार्दिक बधाई प्रेषित है।
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