लाल रुमाल
‘रेल लाइन पर भिनुसार वाली गाड़ी से एक औरत कटी मिली। हाथ में लाल रुमाल था .... उसपर हरे रंग में लिखा था ... जगदीश।’ सुबह होते यह खबर सारे गाँव में फैल गई। ‘कौन ? कहाँ की?’ जैसे सवाल हवा में तैरने लगे। रेल लाइन के पास ही गाँव के बड़े ब्रह्म के चबूतरे पर कुछ औरतें इकट्ठा हैं; कुछ बाबा को पूजने आई हैं, कुछ घसियारिनें हैं। चिड़ई भौजी उनसे मुखातिब हैं। एक काक दंपति चबूतरे की बाईं तरफ पास-पास बैठे हुए महिला-मंडली की तरफ टकटकी लगाए हुए है।
चिड़ई भौजी फुसफुसाकर औरतों से बतिया रही हैं, “अरे कौन क्या? रामायण बाबा की पतोहू थी, छबीली।उनका बड़ा बेटा हरिद्वार में दरबानी करता है। एक रात किसी रघुवीर की पतुरिया के संग था। बीच में पति आ गया। वह तो छुप कर भाग निकला, पर छबीली का दिया हुआ उसका रुमाल वहीं छूट गया।यह वही रुमाल था जो छबीली ने अपने हाथों से तैयार कर पिछली मुलाक़ात में पति(जगदीश)को भेंटस्वरूप दिया था। मखमल के हरे रंग के धागों से उसने उसपर कढ़ाई कर लिखा था, जगदीश। रघुवीर की अपढ़ बीवी उस लिखावट को महज कढ़ाई समझ सीने से लगाए रही। चोरी पकड़ी गई। फिर रघुवीर ने बदला लेने की ठान ली। छुट्टी लेकर रामायण बाबा के घर आकर जम गया। रोज रात बाबा से रामायण सुनता। इधर बाबा सोते, उधर वह रास-लीला की जुगत भिड़ाता। बुढ़िया तो शाम होते ही कुछ खाकर पड़ रहती। नींद में ही खाँ-खेँ करती। बलगम थूकती रहती।
बाबा कभी शाम को बाजार भेज दिये जाते। इधर रघुवीर-छबीली के बीच कनखी-मटकी, लुका-छिपी शुरू हो जाती।
एक रात बुढ़िया का दमा ज़ोरों पर था। देखरेख के लिए रघुवीर आँगन के ओसारे में ही सोया। देर रात बूढ़ी सो गई। शिकारी जगा रहा। पायल की छुनछुन ने उसे साहस दिया। वह छबीली के कमरे में दाखिल हो गया।
फिर वह सब हो गया, जो नहीं होना था। यह क्रम कुछ दिनों तक चला। फिर रघुवीर चला गया।
वहाँ रघुवीर की लंबी गैरहाजिरी से जगदीश शंकित हुआ। घर आया। पड़ोस की भौजाई ने नमक-मिर्च मिलाकर सारी कथा उसे सुना दी। आग-बबूला हो उसने बीवी के सामान तलाशे। ढेर सारी चीजों के साथ उसे वह रुमाल भी मिल गया, जो उस रात रघुवीर की बीवी के बिस्तर पर छूट गया था। जगदीश ने बीवी को खूब धिक्कारा। भाई-बाप को लगा-लगाकर गालियाँ दीं। कट-मर जाने तक की बात कह दी।पति का भरोसा खोई औरत बेचारी क्या करती? लोक-निंदा से उबर गई।”
‘ओह! ओह!! बेचारी!!!’ व्यथित औरतें इतना ही कह पाईं।
कौवा उड़ चला। मादा कौवा ज़ोर से कांव कांव करती उसके पीछे उड़ी। लगा जैसे वह अपने कौवे से पूछ रही हो, ‘औरत (मादा) की बलि से ही बदला पूरा होता है? कांव कांव......।’
Comment
आभार।
लघु कथा अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।
आपका आभार आदरणीय महेंद्र जी।
आदरणीय मनन जी, अच्छी लघुकथा कही आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
शुक्रिया आ.समर साहिब।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई जी।पुरुष की कायराना हरकत का जवाब औरत अपनी हिम्मत से दे सकती है।
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। समसामयिक और उत्तम कथा हुई है। हार्दिक बधाई।
यही सच हैं कि पुरुष की कायराना मानसिकता के चलते आदि से अंत तक औरत की बलि से ही बदला पूरा करने की परम्परा जारी रहेगी।
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