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भाई

बुल्लु की शादी का कर्ज़ अभी सिर पर है..... और वह मर गई।इतना कह चेंथरु लगा फफक पड़ेगा, पर उसने अंदर के तूफान को थाम लिया।शायद पड़ोस के भाई से झिझक हो कि शिकायत हो जाएगी।पर, उसकी आँखें भींग गई थीं। अँधेरे में भी उसकी आवाज सब कुछ जाहिर कर रही थी।

दुख हुआ सब सुनकर, चेंथरु।ढाढस बांधते हुए मास्टर जी बोले।

भइया, कोई पूछेवाला नहीं था कि कुछ मदद चाहिए क्या?’ चेंथरु ने अपने चचेरे भाई का हाथ पकड़ लिया। देर से आँखों में ठहरी गंगा बहने लगी।

यही समय है,चेंथू।सब अपने में मस्त हैं।

ना भइया,अपने में ना। दूसर के केतना हड़प लीं,इ फेर में लोग है।तोहरा इ दुआर पर भोज-भात भइल, एही से सामान सब चोरी ना गइल। हमरा घरे होइत, तब पूड़ी-बुनिया सब भीतर हो जाइत। आधा पेट खा के लोग उठ जाते।चेंथरु का दर्द मुखर होने लगा था। वह आगे बोलते गया,

बाबू मरे के टाइम बड़कू भाई से कहे थे कि चेन्थुया के बेटी के बिआह में सामिलात(इकट्ठे) के पइसे में से दस हजार रुपल्ले दे देना। उ मर गए।बुल्लु की शादी तय हुई। ई चुप रहे, जइसे काठ मार गया हो।

और वो दस हजार रुपये?मिले तुम्हें?’ मास्टर जी ने कुतूहल वश पूछ लिया।

अरे,सुनिए ना। हम इधर-उधर से जोगाड़ किए। बीस हजार उ ट्रक वाले सुबो से मिल गए। अभी देना है। हम लोग छेंका-तिलक में गए। सब हुआ। तब बड़कू भाई जी बोले कि दु हजार लाया हूँ,बाबू बोले थे।

फिर?दिये?’ मास्टर जी ने जानना चाहा।

एँ! देने खातिर थोड़े बोले थे।मुँहपुड़ाई थी कि पूछे भी,देने भी न पड़े। काम तो हो चला था।मैंने लेने से मना कर दिया।

ऐसा?’ मास्टर जी चकित हुए।

अउर का? बड़कू बने हैं, बड़कू! एक माई के पेट के जाये हैं। बस कहने को।चेंथरु का का दर्द छलक पड़ा। वह फफक कर रोने लगा।

मास्टर जी उसे सांत्वना देते हुए इतना ही कह पाये, ‘भाई के पैदा होने के दिन की खुशी कायम रहे,वही स्वर्ग है।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by Mahendra Kumar on October 21, 2022 at 11:35am

पैसे ख़ून के रिश्तों पर भी हावी हैं। इस बात को रेखांकित करती अच्छी लघुकथा है आदरणीय मनन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by Manan Kumar singh on October 20, 2022 at 9:14am

आदरणीय लक्ष्मण भाई जी, आपका आभार। नमन। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 9:54pm

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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