अबके बरस जो आओगे, तो सावन सूखा पाओगे
सूख चुके इन नैनों को तुम, और भींगा ना पाओगे
और अगर तुम ना आए, प्यास ना दिल की बुझ पाए
पत्थराई नैनों सा फिर, दिल पत्थर ना हो जाए
अबके बरस जो आओगे, बसंत शुष्क सा पाओगे
मन के उजड़े बागीचे में, एक फूल खिला ना पाओगे
और अगर तुम ना आए, अटकी डाली ना गिर जाए
सूखे मुरझाए मन को मेरे, पतझर हीं ना भा जाए
अबके बरस जो आओगे, सर्दी में तपते रह जाओगे
मगर गरम रज़ाई में, मेरा एहसास ना पाओगे
और अगर तुम ना आए, अंगीठी की आग ना बुझा
सुखी लकड़ी की तरह कहीं, ख्वाब ना मेरे जल जाए
अबके बरस जो आओगे, दीवाली फिंकी पाओगे
मेरे अँधियारे जीवन में, कोई दीप जला ना पाओगे
और अगर तुम ना आए, दीप ना संग में ला पाए
मेरे जीवन के अंतिम दिन, वनवास में हीं कट जाए
अबके बरस जो आओगे, बेरंग सी होली पाओगे
चाहे रंग से भरे रहो तुम, पर मेरा रंग ना पाओगे
और अगर तूम ना आए, रंग ना मुझ में भर पाए
तेरी कोरी सी चुनर सा, मेरा जीवन ना हो जाए
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
आदरणीय अमन सिन्हा जी अच्छी कविता की है. तुकांतता को समझें. इससे कविता का सौन्दर्य कई गुना बढ़ जाता है. सादर
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