अरकान : 2122 1212 22/112
आशिक़ों का भला करे कोई
मौत आए, दुआ करे कोई
पाँव में फूल चुभ गया उनके
जाए जाए दवा करे कोई
हाल पे मेरे रोता है शब भर
सुब्ह मुझ पर हँसा करे कोई
फ़र्क़ ज़ालिम पे कुछ नहीं पड़ता
चाहे कुछ भी कहा करे कोई
ये नहीं होता, ये नहीं होगा
हम कहें और सुना करे कोई
इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर
मरता हो तो मरा करे कोई
बेवफ़ा मुझको कह रहा है वो
सामने आइना करे कोई
अपने अन्दर मैं क़ैद हूँ कबसे
पास आए, रिहा करे कोई
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब, ग़ालिब की ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल कही आपने, मेरी तरफ़ से मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ I
'हम कहें और सुना करे कोई'--ये मिसरा ग़ालिब के मिसरे से टकरा रहा है है, बस एक लफ़्ज़ का फ़र्क़ है :-
'वो कहें और सुना करे कोई'
जनाब महेंद्र कुमार जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने, ग़ज़ल के शुरूअ के दो और अख़ीर के दो शे'रों में कमाल की शे'रियत है, पूरी ग़ज़ल रवानी में है। मेरी तरफ़ से बहुत सारी दाद और दिली मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं।
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