अरकान : 2122 1212 22/112
आशिक़ों का भला करे कोई
मौत आए, दुआ करे कोई
पाँव में फूल चुभ गया उनके
जाए जाए दवा करे कोई
हाल पे मेरे रोता है शब भर
सुब्ह मुझ पर हँसा करे कोई
फ़र्क़ ज़ालिम पे कुछ नहीं पड़ता
चाहे कुछ भी कहा करे कोई
ये नहीं होता, ये नहीं होगा
हम कहें और सुना करे कोई
इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर
मरता हो तो मरा करे कोई
बेवफ़ा मुझको कह रहा है…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on November 4, 2022 at 1:37pm — 12 Comments
अरकान : 2122 2122 212
ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ
तुहमतें, रुसवाइयाँ, नाकामियाँ
आए थे जब हम यहाँ तो आग थे
राख हैं अब, उठ रहा है बस धुआँ
दिल लगाने की ख़ता जिनसे हुई
उम्र भर देते रहे वो इम्तिहाँ
सोचता हूँ क्या उसे मैं नाम दूँ
जो कभी था तेरे मेरे दरमियाँ
मैं अकेला इश्क़ में रहता नहीं
साथ रहती हैं मेरे तन्हाइयाँ
कहने को तो कब से मैं आज़ाद हूँ
पाँव में अब भी हैं लेकिन…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on October 23, 2022 at 6:30am — 13 Comments
बह्र : 1222 1222 122
यही इक बात मैं समझा नहीं था
जहाँ में कोई भी अपना नहीं था
किसी को जब तलक चाहा नहीं था
ज़लालत क्या है ये जाना नहीं था
उसे खोने से मैं क्यूँ डर रहा हूँ
जिसे मैंने कभी पाया नहीं था
न बदलेगा कभी सोचा था मैंने
बदल जाएगा वो सोचा नहीं था
उसे हरदम रही मुझसे शिकायत
मुझे जिससे कोई शिकवा नहीं था
उसी इक शख़्स का मैं हो गया हूँ
वही इक शख़्स जो मेरा नहीं…
Added by Mahendra Kumar on October 10, 2022 at 6:27pm — 15 Comments
अरकान : 221 2121 1221 212
इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा
ख़ुद को लगा के आग धुआँ देखता रहा
दुनिया बनाने वाले को दीजे सज़ा-ए-मौत
दंगे में मरने वाला यही बोलता रहा
मेरी ही तरह यार भी मेरा अजीब है
पहले तो मुझको खो दिया फिर ढूँढता रहा
रोता रहा मैं हिज्र में और हँस रहे थे तुम
दावा ये मुझसे मत करो, मैं चाहता रहा
कुछ भी नहीं कहा था अदालत के सामने
वो और बात है कि मैं सब जानता…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on December 10, 2019 at 10:00am — 4 Comments
अरकान : 2122 1122 22
चाहा था हमने न आए आँसू
उम्र भर फिर भी बहाए आँसू
कोई तो हो जो हमारी ख़ातिर
पलकों पे अपनी सजाए आँसू
मार के अपने हसीं सपनों को
ख़ून से मैंने बनाए आँसू
वक़्त बेवक़्त कहीं भी आ कर
याद ये किसकी दिलाए आँसू
कोई भी तेरा न दुनिया में हो
रात दिन तू भी गिराए आँसू
दुनिया में इनकी नहीं कोई क़द्र
इसलिए मैंने छुपाए आँसू
आपसे मिल के ये पूछूँगा मैं
आपने…
Added by Mahendra Kumar on December 3, 2019 at 5:46pm — 4 Comments
बह्र : 1222 1222 122
तुम्हारे शहर से मैं जा रहा हूँ
बिछड़ने से बहुत घबरा रहा हूँ
वहाँ दुनिया को तू अपना रही है
यहाँ दुनिया को मैं ठुकरा रहा हूँ
उठा कर हाथ से ये लाश अपनी
मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ
तुम्हारे इश्क़ में बन कर मैं काँटा
सभी की आँख में चुभता रहा हूँ
नहीं मालूम जाना है कहाँ पर
न जाने मैं कहाँ से आ रहा हूँ
मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे
तुम्हीं से…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:51pm — 8 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22/112
मैंने देखा है कि दुनिया में क्या क्या होता है
मुझसे मत बोलिए मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
इश्क़ ही सबसे बड़ा ज़ुर्म है इस दुनिया में
ये ख़ता कर लो तो हर शख़्स ख़फ़ा होता है
जो गलत करते हैं, वो लोग सही होते हैं
और जो अच्छा करे तो वो बुरा होता है
मैं भी इस ज़ख़्म को नासूर बना डालूँगा
दर्द बतलाओ मुझे कैसे दवा होता है
कभी दिखता था ख़ुदा मुझको भी मेरे अन्दर
और अब इस पे भी…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:30am — 10 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं
वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं
कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक
बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं
यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम
हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं
हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब
जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं
अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम
जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 4:00pm — 14 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22
कैसे बनता है कोई शख़्स तमाशा देखो
आओ बैठो यहाँ पे हश्र हमारा देखो
कैसे हिन्दू को किया दफ़्न वहाँ लोगों ने
एक मुस्लिम को यहाँ कैसे जलाया देखो
जिस तरह लूटा था दिल्ली को कभी नादिर ने
उसने लूटा है मेरे दिल का ख़ज़ाना देखो
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो
नूर से जल के, फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 13, 2019 at 7:30pm — 18 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था
दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था
कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के
ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था
खेतों में लहू देख के करते हो शिकायत
हथियार ज़मीनों में उगाना ही नहीं था
ये कौन जगह है कि जहाँ होश में सब हैं
हम रिन्द हैं हमको यहाँ लाना ही नहीं था
ताउम्र उसी शहर में ही भटका किया मैं
रहने को जहाँ कोई ठिकाना ही नहीं…
Added by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 8:00pm — 12 Comments
बह्र : 2122 2122 2122
याद आ आ कर तुम्हारी, जानते हो?
रात भर मुझको नचाती, जानते हो?
प्यार करने वाला होता है जमूरा
इश्क़ होता है मदारी, जानते हो?
शाइरी में चाँद को कहते हैं सूरज
आग को कहते हैं पानी, जानते हो?
हर किसी को मैं समझ लेता हूँ अपना
मुझ में है ये ही ख़राबी, जानते हो?
बन्द कमरे की तरह अब हो गया हूँ
मुझमें दरवाज़ा न खिड़की,…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 1, 2019 at 2:30pm — 10 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 112/22
अश्क़ आँखों में कभी भूल के लाते भी नहीं
और बर्बादियों का शोक मनाते भी नहीं
पूछ कर ज़िन्दगी में लोग जो आते भी नहीं
इतने बेदर्द हैं जाएँ तो बताते भी नहीं
वो ख़ुशी थी कि जिसे रास नहीं आए हम
और वो ग़म हैं जो हमें छोड़ के जाते भी नहीं
लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं
जाइए आपका मैख़ाने में क्या काम है जब
ख़ुद भी पीते नहीं औरों को पिलाते भी…
Added by Mahendra Kumar on October 26, 2018 at 11:52am — 21 Comments
उसका सपना था कि दुनिया ख़त्म हो जाए और दुनिया ख़त्म गयी। अब अगर कोई बचा था तो सिर्फ़ वो और उसकी टूटी-फूटी मोहब्बत।
"अब तो इसे मुझसे बात करनी ही पड़ेगी।" खण्डहर बन चुके शहर की वीरान सड़क पर खड़े उस शख़्स ने कहा।
वह उससे बेपनाह मुहब्बत करता था। वह चाहता था कि वो उसे देखे, उसे समझे, उससे बात करे मगर वो हमेशा ही किसी न किसी और को ढूँढ लेती थी। वह इस बात से हमेशा दुःखी रहता था कि उसे छोड़कर वो बाकी सबसे बात करती है मगर उससे नहीं। उसने कहीं पढ़ा था कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है।…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on August 10, 2018 at 8:30am — 10 Comments
संवेदनाओं की पथरीली चोटी पर बैठकर
अपने रिसते हुए घावों को देखता हुआ
ये कौन है
जो कभी कुत्ते की तरह
जीभ से उन्हें चाटता है
तो कभी मुट्ठी में नमक भर कर
उनमें उड़ेल देता है
और फिर एक तपस्वी की तरह
ध्यान लगाकर सुनता है
अपनी आहों और कराहों को?
पत्थरों को उठा कर
अपने लहू में डुबा कर
भावनाओं की लहरों पर बैठे हुए
कौन लिख रहा है उनसे
अपना मृत्यु लेख?
किसी फन्दे पर लटक कर
एक पल में शान्ति से गुज़र जाने की अपेक्षा…
Added by Mahendra Kumar on June 27, 2018 at 9:03am — 4 Comments
संसद भवन के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे हुए उन युवाओं को दो महीनों से अधिक का समय हो गया था पर न तो किसी अख़बार में इसकी कोई ख़बर थी और न ही न्यूज़ चैनल्स पर चर्चा।
“इन बेरोज़गार लौंडों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।” बड़ी-बड़ी मूँछों वाले उस स्थानीय बुज़ुर्ग ने अपने पास खड़े अधेड़ से कहा। “कुछ नहीं मिला तो सरकार को ही बदनाम करने में लग गए।”
“कह क्या रहे हैं ये लोग?” अधेड़ ने जिज्ञासा व्यक्त की।
“कह रहे हैं कि जब देश की जनता भूखों मर रही है तो कोई…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 25, 2018 at 4:30pm — 9 Comments
“कितने हसीन थे वो दिन जब पूरे आसमान पर अकेले मेरा राज हुआ करता था।” अपनी पतंग को माँझे से बाँधते हुए छोटा सा वह लड़का अपने सुनहरे अतीत में खो गया।
अपने मोहल्ले में तब वो अकेले ही पतंग उड़ाने वाला हुआ करता था। न तो उसे कोई रोकने वाला था और न ही टोकने वाला। वह पूरी तरह से स्वतंत्र था। उस वक़्त उसकी बस एक ही हसरत होती, “एक दिन अपनी पतंग चाँद तक ले जाऊँगा।”
मगर यह ज़्यादा दिन चला नहीं। धीरे-धीरे उसके मोहल्ले में दूसरे पतंगबाज़ भी आने लगे। उनके आते ही आसमान में…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 22, 2018 at 5:37pm — 8 Comments
“तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें कल ही उस नर्क से दूर ले जाऊँगा।”
आज से कई दिन पहले। “ये आदमी नहीं जानवर है।” पाखी ने अपने पिता से एक बार फिर कहा। “मुझसे रोज शराब पी के मारपीट करता है। वो भी बिना किसी बात के। बस आप मुझे यहाँ से ले जाइए।”
“शादी के बाद ससुराल ही लड़की का असली घर होता है बेटी। थोड़ा सहन करो। समय सब ठीक कर देगा।” और पिता ने एक बार फिर वही जवाब दिया।
“माँ, तुम तो मुझे समझो। या तुम भी पिता जी की तरह?” पर माँ भी समझने से ज़्यादा समझाने पर…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 20, 2018 at 6:14pm — 6 Comments
‘‘फ़ायर!’’ जनरल के कहते ही सैकड़ों बन्दूकें गरजने लगीं। उस जंगल में आदिवासी चारों तरफ़ से घिर चुके थे। उनकी लाशें ऐसे गिर रही थीं जैसे ताश के पत्ते। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान, कोई भी ऐसा नहीं नहीं था जो बच सका हो। कुछ ने पेड़ों के पीछे छिपने की कोशिश की तो कुछ ने पोखर के अन्दर मगर बचा कोई भी नहीं। देखते ही देखते हरा-भरा जंगल लाल हो गया।
‘‘आगे बढ़ो!’’ जनरल ने आदेश दिया। सेना लाशों के बीच से होते हुए जंगल के भीतर बढ़ने लगी। वहाँ कोई भी ज़िन्दा नज़र नहीं आ रहा था सिवाय उस छोटी सी…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 13, 2018 at 12:00pm — 13 Comments
और प्रधानमंत्री जी गायब हो गये। ‘‘क्या? प्रधानमंत्री जी गायब हो गये? यह कैसे हो सकता है?’’ हर किसी के जे़हन में यही सवाल था।
उस दिन जब रसोई में प्रधानमंत्री जी बच्चों के लिए पापड़ तल रहे थे तो पापड़ तलते-तलते न जाने कहाँ अचानक गायब हो गये। जैसे ही यह ख़बर न्यूज़ चैनल्स पर फ़्लैश हुई तो सारा देश सकते में आ गया।
‘‘हम लोग जी जान से लगे हैं और बहुत जल्द ही प्रधानमंत्री जी का पता लगा लेंगे। आप लोग निश्चिन्त रहिए।’’ जाँच समिति के प्रमुख ने देश को आश्वस्त करते हुए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 6:30pm — 4 Comments
‘‘बिटिया की उम्र निकली जा रही है, तुम उसकी कहीं शादी क्यों नहीं करते?’’ हर कोई उससे यही सवाल करता। कल तो सुपरवाइजर ने भी टोक दिया, ‘‘कलेक्टर ढूँढ रहे हो क्या?’’
मिल में काम करने वाले उस मजदूर का सपना कोई कलेक्टर नहीं बस एक अच्छा सा लड़का था जिसे वह अपनी बेटी के लिए ढूँढ रहा था। बीमारी से बीवी के गुज़र जाने के बाद बस एक बेटी ही थी जो उसका सबकुछ थी। बीते सालों में उसने रात-दिन एक कर के कई रिश्ते देखे मगर बात कहीं बनी नहीं। आज भी वह एक ऐसी ही जगह से निराश हो कर लौटा था। ‘‘बेटी!’’…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 7, 2018 at 5:30pm — 16 Comments
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