बह्र : 2122 2122 2122
याद आ आ कर तुम्हारी, जानते हो?
रात भर मुझको नचाती, जानते हो?
प्यार करने वाला होता है जमूरा
इश्क़ होता है मदारी, जानते हो?
शाइरी में चाँद को कहते हैं सूरज
आग को कहते हैं पानी, जानते हो?
हर किसी को मैं समझ लेता हूँ अपना
मुझ में है ये ही ख़राबी, जानते हो?
बन्द कमरे की तरह अब हो गया हूँ
मुझमें दरवाज़ा न खिड़की, जानते हो?
नक़्द में ही बस मुझे पाओगे अब तुम
बन्द कर दी है उधारी, जानते हो?
हर सितम का लूँगा मैं गिन गिन के बदला
मैं भी हूँ पक्का हिसाबी, जानते हो?
मेरे अन्दर उस ख़ुदा की राह तकते
मर गया है इक पुजारी, जानते हो?
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ आदरणीय गजेन्द्र श्रोत्रिय जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी सादर अभिवादन। बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। रदीफ और कवाफी के साथ साथ कहन में भी नयापन है। बहुत बधाई आपको।
बहुत-बहुत शुक्रिया सर. वांछित सुधार कर दिया है. सादर.
'बस नक़द में ही मुझे पाओगे अब तुम'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "नक़्द",इसे यूँ कर लें:-
'नक़्द में ही बस मुझे पाओगे अब तुम'
'हिसाबी' वाला शैर रख लें ।
हृदय से आभारी हूँ आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति और सराहना का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
सादर आदाब आदरणीय समर कबीर सर. ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति और इस्लाह का हृदय से आभारी हूँ. मतले और छठवें शेर में परिवर्तन कर रहा हूँ. 'हिसाबी' वाले शेर में मैंने 'हिसाबी' को 'गिन गिन' के सन्दर्भ में व्यंग्यात्मक लहजे में प्रयोग किया था, 'बदला' के लिए नहीं. यदि यह इस सन्दर्भ में सही लग रहा है तो ठीक नहीं मैं इसे भी परिवर्तित कर देता हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
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जनाब महेंद्र कुमार साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
बेहतरीन गज़ल। हार्दिक बधाई ।
हर किसी को मैं समझ लेता हूँ अपना
मुझ में है ये ही ख़राबी, जानते हो?
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
मतला अगर यूँ कहें तो:-
'याद आ आ कर तुम्हारी,जानते हो
रात भर मुझको नचाती,जानते हो' ?
'यूँ न मुझको मुफ़्त में पाओगे अब तुम
बन्द कर दी है उधारी, जानते हो'
इस शैर के ऊला में 'मुफ़्त' और सानी में 'उधारी' ? ग़ौर करें ।
'हर सितम का लूँगा मैं गिन गिन के बदला
मैं भी हूँ पक्का हिसाबी, जानते हो'
इस शैर के सनी में 'हिसाबी' शब्द उचित नहीं चाहें तो "खिलाड़ी" कर सकते हैं ।
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