संसद भवन के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे हुए उन युवाओं को दो महीनों से अधिक का समय हो गया था पर न तो किसी अख़बार में इसकी कोई ख़बर थी और न ही न्यूज़ चैनल्स पर चर्चा।
“इन बेरोज़गार लौंडों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।” बड़ी-बड़ी मूँछों वाले उस स्थानीय बुज़ुर्ग ने अपने पास खड़े अधेड़ से कहा। “कुछ नहीं मिला तो सरकार को ही बदनाम करने में लग गए।”
“कह क्या रहे हैं ये लोग?” अधेड़ ने जिज्ञासा व्यक्त की।
“कह रहे हैं कि जब देश की जनता भूखों मर रही है तो कोई काजू की रोटी कैसे खा सकता है? कहीं पीने को पानी नहीं है और कुछ लोग बादाम का शर्बत पी रहे हैं? लोकतंत्र में ये कैसे सम्भव है? प्रधानमंत्री इसका जवाब दें।”
“कह तो सही रहे हैं।” अधेड़ को लड़कों की बात में दम दिखा।
“क्या ख़ाक सही कह रहे हैं?” बुज़ुर्ग ग़ुस्सा हो गया। “अरे मेहनत करो और तुम भी खाओ। किसने रोका है? पर ये तो इन चोट्टों से होगा नहीं। ये तो बस व्यवस्था को दोष देंगे और पूँजीपतियों को गरियाएँगे।” संसद भवन की तरफ़ देखते हुए उसने गर्व से अपना सर ऊँचा किया और कहा, “प्रधानमंत्री देश का राजा होता है। अब अगर राजा ही फ़क़ीर की तरह खाये-पिये तो देश की नाक का क्या होगा? वो कट नहीं जाएगी?”
अधेड़ को इस बार बुज़ुर्ग की बात में दम नज़र आया। “समानता की बात मुझे भी बेमानी मालूम देती है। जब हमारे हाथ की उँगलियाँ तक बराबर नहीं हैं तो हम कौन होते हैं समाज में समानता ढूँढने वाले।”
“समझदार आदमी मालूम पड़ते हो।” बुज़ुर्ग ने ख़ुश होते हुए कहा। “समानता तो सिर्फ़ एक चूरन है जो ये क्रान्ति-क्रान्ति चिल्लाने वाले बेचा करते हैं। तुम देख लेना, ये पक्का विरोधी पार्टी से पैसे खा के बैठे हैं। किसानों और मज़दूरों के लौंडे पढ़ाई-लिखाई के बहाने शहरों में आ कर क्या करते हैं मैं अच्छे से जानता हूँ। अगर अच्छा पैसा मिले तो ये साले ज़हर भी खा जाएँ।”
काफ़ी देर तक उनके बीच इसी तरह बातचीत होती रही और फिर वो वहाँ से चले गए।
इतने दिनों की भूख हड़ताल में अधिकांश युवा दम तोड़ चुके थे, बचे थे तो सिर्फ़ जतिन दा और भगत सिंह। आज उन्होंने भी दम तोड़ दिया। न तो उन्हें प्रधानमंत्री की तरफ़ से कोई जवाब मिला और न ही उनके द्वारा उठाए गए सवालों पर जनता का समर्थन।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय महेंद्र जी मुखर चिंतन के साथ हकीकत को बयान करती शानदार रचना हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
नमस्कार आदरणीया नीलम जी। रचना पर अपना अमूल्य समय दे कर टिप्पणी करने के लिए आपका हृदय से आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
सादर आदाब आदरणीय समर कबीर सर। लघुकथा पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी। हार्दिक आभार। सादर।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। हृदय से आभारी हूँ। सादर।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, नमस्कार। बधाई स्वीकार करें अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए ।
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,बहतरीन लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी।बेहतरीन संदेश प्रद लघुकथा।सम सामयिक विषय पर अच्छा प्रयास।
बेहतरीन उम्दा और विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई जनाब महेंद्र कुमार साहिब।
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