बह्र : 221 1221 1221 122
अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं
वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं
कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक
बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं
यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम
हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं
हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब
जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं
अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम
जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए हैं
उनके लिए क़ुर्बान मैंने हर ख़ुशी कर दी
जो हर घड़ी बस मुझको रुलाने के लिए हैं
जी करता है दुनिया को जला दूँ मैं इन्हीं से
ये दीप जो मन्दिर में जलाने के लिए हैं
सबकुछ गँवा के ज़िन्दगी में हमने ये पाया
हम लोग तो हर चीज़ गँवाने के लिए हैं
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जी आदरणीय समर कबीर सर. देखता हूँ इसे कैसे बेहतर कर सकता हूँ. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
//ऐसी बह्र जहां 11 का प्रयोग हो वहाँ मात्रा पतन से बचने का प्रयास करने से ग़ज़लों में रवानी अच्छी आती है । // उम्दा जानकारी साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय नवीन जी. //एक सुझाव मात्र।// सुझाव अच्छा है. और आप निश्चिंत रहें.
मेरे ब्लॉग पर सभी प्रतिक्रियाओं का खुले दिल से स्वागत है. ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति, हौसलाफजाई और इस्लाह का बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय राज़ नवादवी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
छटे और आख़री शैर पर ग़ौर करें ।
ग़ज़ल का प्रयास बहुत सुंदर हुआ है । अच्छे मफ़हूम पर ग़ज़ल हुई ।
221 1221 1221 122
उनके लिए कुर्बान मैंने हर खुशी कर दी ।
जिनके लिए कुर्बान हुई हर खुशी मेरी ।
बस लोग वही मुझको रुलाने के लिए हैं ।। एक सुझाव मात्र ।
ऐसी बह्र जहां 11 का प्रयोग हो वहाँ मात्रा पतन से बचने का प्रयास करने से ग़ज़लों में रवानी अच्छी आती है ।
आदरणीय भाई महेंद्र कुमार साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर.
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई स्वीकार कीजिये
लिखना सार्थक रहा आदरणीय अजय जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. हार्दिक आभार. सादर.
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
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