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ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई

अरकान : 2122 1212 22/112

आशिक़ों का भला करे कोई

मौत आए, दुआ करे कोई

पाँव में फूल चुभ गया उनके

जाए जाए दवा करे कोई

हाल पे मेरे रोता है शब भर

सुब्ह मुझ पर हँसा करे कोई

फ़र्क़ ज़ालिम पे कुछ नहीं पड़ता

चाहे कुछ भी कहा करे कोई

ये नहीं होता, ये नहीं होगा

हम कहें और सुना करे कोई

इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर

मरता हो तो मरा करे कोई

बेवफ़ा मुझको कह रहा है वो

सामने आइना करे कोई

अपने अन्दर मैं क़ैद हूँ कबसे

पास आए, रिहा करे कोई

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on November 10, 2022 at 4:32pm

जी सर, सही कह रहे हैं। यह तीसरी ग़ज़ल है जिसमें ऐसा हुआ है। एक ग़ज़ल बहुत पहले की है और दो अभी की। पहले वाली ग़ज़ल में चूँकि मफ़हूम टकरा रहा था तो उस शेर को ग़ज़ल से हटा दिया। अभी की दो ग़ज़लों में से एक का मिसरा जो मेरे ख़याल में आया था उसे एक दूसरे शाइर ने पहले प्रयोग किया था। इसलिए उसे इनवर्टेड कॉमा में रख कर प्रयोग किया था। इस वाली ग़ज़ल में मुझे लगा कि शायद इसे प्रयोग किया जा सकता है, मफ़हूम अलग होने के कारण और मिसरा भी एक शब्द अलग होने के कारण। यह स्थिति भले ही अनजाने में हुई हो पर किसी भी लेखक के लिए सम्माननीय नहीं है। यदि आपको लगता है कि मुझे पहले वाली ग़ज़ल की तरह हाल की इन दोनों ग़ज़लों से भी ऐसे शेर हटा देना चाहिए तो मैं तुरन्त हटा देता हूँ। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 10, 2022 at 3:40pm

//एक जिज्ञासा है कि अगर ऐसे मिसरे के ऊला (या सानी) से मूल से अलग एक दूसरे तरह का शेर उभर कर आ रहा हो तो उसे रखना चाहिए या नहीं जैसा कि इस शेर के ऊला में है//

ये तो ज़ाहिर है कि पूरा का पूरा मफ़हूम शे'र मेंनहीं है, सिर्फ़ एक ही मिसरा किसी दूसरे से मिल रहा है, अगर ऐसा अनजाने में हो तो दूसरी बात है,लेकिन अगर ये मालूम हो जाए कि मिसरा टकरा रहा है तो उसे नहीं रखना चाहिए,या उसे रखना ही है तो इन्वर्टेड में लिखें, ये आपकी तीसरी ग़ज़ल है शायद जिसमें ऐसा हुआ है ।

Comment by Mahendra Kumar on November 10, 2022 at 6:55am

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी। आभारी हूँ।

Comment by Mahendra Kumar on November 10, 2022 at 6:54am

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय ज़ैफ़ जी। हार्दिक आभार।

Comment by Mahendra Kumar on November 10, 2022 at 6:54am

आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। बहुत शुक्रिया।

Comment by Mahendra Kumar on November 10, 2022 at 6:53am

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर सर। आप सही कह रहे हैं। एक जिज्ञासा है कि अगर ऐसे मिसरे के ऊला (या सानी) से मूल से अलग एक दूसरे तरह का शेर उभर कर आ रहा हो तो उसे रखना चाहिए या नहीं जैसा कि इस शेर के ऊला में है। सादर।

Comment by Mahendra Kumar on November 10, 2022 at 6:49am

दिल से आभारी हूँ आदरणीय अमीरुद्दीन जी। बहुत-बहुत शुक्रिया।

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2022 at 8:14am

आदरणीय महेंद्र कुमार जी सादर, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर उम्दा हैं. बहुत बधाई स्वीकारें. सादर

Comment by Zaif on November 8, 2022 at 4:51am

इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर

मरता हो तो मरा करे कोई

बेवफ़ा मुझको कह रहा है वो

सामने आइना करे कोई

..

वाह। आदरणीय महेंद्र जी, क्या ही कहने। लाजवाब ग़ज़ल।।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 10:54am

आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

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