और प्रधानमंत्री जी गायब हो गये। ‘‘क्या? प्रधानमंत्री जी गायब हो गये? यह कैसे हो सकता है?’’ हर किसी के जे़हन में यही सवाल था।
उस दिन जब रसोई में प्रधानमंत्री जी बच्चों के लिए पापड़ तल रहे थे तो पापड़ तलते-तलते न जाने कहाँ अचानक गायब हो गये। जैसे ही यह ख़बर न्यूज़ चैनल्स पर फ़्लैश हुई तो सारा देश सकते में आ गया।
‘‘हम लोग जी जान से लगे हैं और बहुत जल्द ही प्रधानमंत्री जी का पता लगा लेंगे। आप लोग निश्चिन्त रहिए।’’ जाँच समिति के प्रमुख ने देश को आश्वस्त करते हुए कहा।
‘‘आपने उन्हें कहाँ छुपा कर रखा है?’’ शक की सुई सबसे पहले प्रधानमंत्री जी के भाई पर गयी। ‘‘मैं भला उन्हें क्यों गायब करूँगा?’’ भाई ने हैरत से कहा। ‘‘क्योंकि वो आपके कपड़े चुरा कर पहन लिया करते थे।’’
शक की अगली सुई प्रधानमंत्री जी की बहन पर जा कर टिकी। ‘‘आपने उन्हें कहाँ छुपा कर रखा है?’’ बहन अवाक थी। ‘‘बनिये मत, हमें सब मालूम है। आपने अपने भाई का अपहरण सिर्फ़ इसलिए कर लिया क्योंकि वो आपसे ज़्यादा अच्छे पापड़ बनाते थे और होली पे लोग आपकी नहीं, उनकी तारीफ़ करते थे।’’
जाँच समिति ने हर आदमी पर शक किया, हर किसी से पूछताछ की, देश का चप्पा-चप्पा छान मारा लेकिन प्रधानमंत्री जी का कहीं पता नहीं चला। ‘‘हम लोग जी जान से लगे हैं और बहुत जल्द ही प्रधानमंत्री जी का पता लगा लेंगे। आप लोग निश्चिन्त रहिए।’’ जाँच समिति के प्रमुख ने देश को पुनः आश्वस्त करते हुए कहा।
किन्तु प्रधानमंत्री जी की माँ इन सब प्रयत्नों से सन्तुष्ट नहीं थीं। वो चीख़-चीख़ कर सबसे कहती थीं, ‘‘ये लोग मेरे बेटे को क्या ढूँढेंगे, उसे तो इन्हीं लोगों ने गायब किया है।’’ बाद में सरकारी रिपोर्ट से यह बात पता चली कि उनकी माँ पागल थीं।
आज इतने वर्ष बीतने के बाद भी जाँच समिति के हाथ पूरी तरह से खाली हैं। किसी को यह नहीं समझ आ रहा कि प्रधानमंत्री जी को ज़मीन खा गयी या आसमान निगल गया। पर जाँच अधिकारियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वो अभी भी प्रधानमंत्री जी के भाई और बहन से लाॅकअप में पूछताछ कर रहे हैं। और माँ? माँ को अभी भी संसद भवन के बाहर चीख़ते हुए सुना जा सकता है, ‘‘ये लोग मेरे बेटे को क्या ढूँढेंगे, उसे तो इन्हीं लोगों ने गायब किया है।’’
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
जनाब महेंद्र कुमार साहिब, अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
अपने विचारों से अवगत कराने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, सादर आदाब. कईयों ने तो मेरी रचनाओं पर आना ही छोड़ दिया है. बहरहाल, शीर्षक को ले कर मैंने भी काफी चिंतन किया पर कोई अन्य ऐसा शीर्षक मुझे भी नहीं मिला जो इसकी सांकेतिकता को बरकरार रख सके. आपने इस शीर्षक का अर्थ नेट पर खोजा, यह साहित्य के प्रति आपके प्रेम को दर्शाता है. प्रतिक्रिया हेतु पुनः बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.
आदाब। दो संज्ञा-नामों के साथ रिश्तोंं की पीड़ाओं को, वर्तमान भारतवासियों की पीड़ाओं को बाख़ूबी शाब्दिक करती जुझारू लेखनी की बेहतरीन विचारोत्तेजक लघुकथा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुमकामनायें मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार जी। अभी मैैंं शीर्षक का अर्थ देख रहा था नेट पर। कोई उचित पर्यायवाची ढूंढ रहा था सांकेतिकता बरकरार रखने के लिए। नहीं मिला!
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