‘‘फ़ायर!’’ जनरल के कहते ही सैकड़ों बन्दूकें गरजने लगीं। उस जंगल में आदिवासी चारों तरफ़ से घिर चुके थे। उनकी लाशें ऐसे गिर रही थीं जैसे ताश के पत्ते। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान, कोई भी ऐसा नहीं नहीं था जो बच सका हो। कुछ ने पेड़ों के पीछे छिपने की कोशिश की तो कुछ ने पोखर के अन्दर मगर बचा कोई भी नहीं। देखते ही देखते हरा-भरा जंगल लाल हो गया।
‘‘आगे बढ़ो!’’ जनरल ने आदेश दिया। सेना लाशों के बीच से होते हुए जंगल के भीतर बढ़ने लगी। वहाँ कोई भी ज़िन्दा नज़र नहीं आ रहा था सिवाय उस छोटी सी बच्ची के जो अपनी मरी हुई माँ का दूध पी रही थी। ‘‘अब ये जी कर क्या करेगी?’’ जनरल ने उसे गोली मारी और आगे बढ़ गया।
अन्दर आदिवासियों का एक बहुत बड़ा गाँव था। सेना अपनी पोजीशन ले चुकी थी। जनरल का आदेश मिलते ही सैनिकों ने ज़ोरदार हमला बोला। थोड़ी ही देर में उस बस्ती का नामोनिशान मिट गया। ‘‘आॅपरेशन पूरा हुआ।’’ जनरल ने धूँ-धूँ कर जलते हुए जंगल के बीच से अपने सीनियर को सूचना दी। ‘‘शाबाश उधम सिंह!’’ उधर से आवाज़ आयी। ‘‘सरकार तुम्हारे काम से बहुत ख़ुश है। वो तुम्हें लन्दन में फ्लैट दे कर सम्मानित करना चाहती है। बधाई हो!’’
ठीक इसी वक़्त देश के अन्दर एक शहर की बड़ी सी कोठी के भीतर। ‘‘ये लो हथियार। आज रात विधर्मियों को छोड़ना नहीं है।’’ भगत सिंह ने अपने साथियों को हथियार देते हुए कहा। सबने डाॅक्टर सत्यपाल के पैर छुए, उनसे आशीर्वाद लिया और कोठी से बाहर चले गये। कुछ ऐसा ही नज़ारा सैफ़ुद्दीन किचलू के घर भी था। हथियार वहाँ भी बांटे जा रहे थे।
बाहर मौसम बहुत ख़राब था। आंधी के साथ तेज़ बारिश भी हो रही थी। सड़क पर जर्जर मकान की दीवार से सटकर एक भिखारी खड़ा था जो चुपचाप यह सब देख रहा था। उसने बारिश से बचने के लिए एक टूटी हुई तस्वीर से अपना सर ढक रखा था। तस्वीर भारत माता की थी। अब उनके शरीर पर कोई ज़ंजीर नहीं थी। भारत माता आज़ाद थीं पर उनकी ज़ंजीर अब भगत और उधम सिंह जैसे नौजवानों को जकड़ चुकी थी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
उत्तम कथा, हार्दिक बधाई
नमस्कार आदरणीया रक्षिता जी। लघुकथा पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी के हृदय से आभारी हूँ आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। हार्दिक आभार। सादर।
नमस्कार आदरणीया नीलम जी। लघुकथा पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण जी। हार्दिक आभार। सादर।
आदरणीय महेन्द्र जी नमस्कार,
लघुकथा पढते पढते आखों में उस समय के चलचित्र दौड़ पड़े....बहुत ही सुन्दर लघुकथा ।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आपकी कलम व परिकल्पना से एक और उम्दा सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब। दरअसल जिन पाठकगण को इस ऐतिहासिक घटना के पात्रों के बारे में आवश्यक जानकारी नहीं है, वे कुछ असहजता महसूस कर सकते हैं रुचि लेने में, जबकि कुछ जानकार पाठकगण ऐसे विषयों में बहुत रुचि लेते हैं। रचना के अनुसार बढ़िया शीर्षक, लेकिन भाव अनुसार कोई संवेदनशील शीर्षक भी सोचा जा सकता है और 'जलियांवाला बाग़' स्थान नाम रचना में कहीं शामिल किया जा सकता है मेरे विचार से। सादर।
आ. भाई महेंद्र जी, बेहतरीन कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, नमस्कार । बहुत ही अच्छी लघुकथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
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