For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें कल ही उस नर्क से दूर ले जाऊँगा।”

आज से कई दिन पहले। “ये आदमी नहीं जानवर है।” पाखी ने अपने पिता से एक बार फिर कहा। “मुझसे रोज शराब पी के मारपीट करता है। वो भी बिना किसी बात के। बस आप मुझे यहाँ से ले जाइए।”

“शादी के बाद ससुराल ही लड़की का असली घर होता है बेटी। थोड़ा सहन करो। समय सब ठीक कर देगा।” और पिता ने एक बार फिर वही जवाब दिया।

“माँ, तुम तो मुझे समझो। या तुम भी पिता जी की तरह?” पर माँ भी समझने से ज़्यादा समझाने पर ज़ोर देती। “वो जैसा भी है अब तुम्हारा पति है बेटी और पति को हमारे यहाँ परमेश्वर माना जाता है।” “यही परमेश्वर तुम्हारी बेटी को एक दिन परलोक पहुँचाएगा। देख लेना।” और वह निराश हो कर फ़ोन रख देती।

“क्या तुम भी माँ और पिता जी की तरह मेरा दुःख नहीं समझोगे? अगर तुम मुझे ले नहीं जा सकते तो कम से कम तलाक़ ही दिलवा दो।” बड़ी उम्मीद से उसने अपने भाई को फ़ोन किया। “तलाक़? तुम पागल तो नहीं हो गयी हो? ख़ानदान की नाक कटवाओगी क्या? तुम वहीं रुको, मैं छुट्टी मिलते ही उधर आता हूँ।” और वह छुट्टी लेता ही रह गया।

हर जगह से निराश हो कर पाखी ने उसे फ़ोन किया जिससे वह बेहद प्यार करती थी। “क़ाश मैंने तुम्हारी बात मान ली होती। अगर मैंने उस दिन हिम्मत की होती तो आज मेरी ज़िन्दगी नर्क न होती।” वो आँसुओं को रोकने की हर सम्भव कोशिश कर रही थी। “मेरा तुमसे यह कहने का हक़ तो नहीं है मगर फिर भी, अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिए ज़रा सी भी जगह बची हो तो प्लीज़ मुझे यहाँ से ले जाओ।”

शादी के इतने सालों बाद अचानक उससे बात कर कबीर ख़ुश भी था और बहुत दुःखी भी। “तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें कल ही उस नर्क से दूर ले जाऊँगा।” उसने कहना तो यही चाहा था पर कहा कुछ और।

“मैं तुम्हें वहाँ से ले तो जा सकता हूँ पर सोचो तुम्हारे घर वालों पर क्या बीतेगी? जिस समाज के डर से उन्होंने हम दोनों की शादी नहीं होने दी उस इज़्ज़त का क्या होगा?” वह ख़ुद को क़ाबू में रखने की कोशिश कर रहा था। “तुम शादीशुदा हो। तुम पर अब दोहरी ज़िम्मेदारी है। अगर तुम मुझे चाहती हो तो अपने पति का ख़याल रखो और उन्हें प्यार दो। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।”

पाखी की आँखों से दो आँसू ढलक गए। “कोशिश करती हूँ पर अगर मुझे कुछ हो जाए तो मुझे माफ़ कर देना।” और उसने फ़ोन काट दिया।

आज सुबह ही पाखी की लाश उसके मायके लायी गयी थी। फाँसी के फन्दे पर झूल कर उसने ख़ुद को मुक्त कर लिया था। यह ख़बर जैसे ही कबीर को मिली वह भागता हुआ पाखी की चिता के पास पहुँचा और उसमें कूद गया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 22, 2018 at 11:28am

वाह आदरणीय क्या ही शानदार लघु कथा लिखी है...ये बहुत ही विकराल समस्या है स्पेशली हिन्दू धर्म में जहाँ एक बार शादी के बाद उसे तोडना पाप की तरह देखा जाता जाता है..जीवन में कई गलत निर्णय हो जाते हैं उनमे सुधार किया जाना चाहिए...लेकिन माफ़ी के साथ कहना चाहता हूँ आखरी पंक्ति खटक रही है मुझे...

Comment by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 1:20pm

आदरणीय महेन्द्र जी एक सामाजिक विषय पर मार्मिक लघु कथा। इस मार्मिक और संदेशप्रद प्रस्तुति के लिए हार्दिकबधाई।

Comment by babitagupta on June 21, 2018 at 12:20pm

विवाहोपरांत प्रताड़ित लडकियों की मायके वालो के उसके प्रति नजरिये को हालाते वयां करती बेहतरीन लघुकथा,हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी .

Comment by Neelam Upadhyaya on June 21, 2018 at 11:29am

आदरणीय महेंद्र  कुमार जी, नमस्कार।  बहुत ही अच्छी और अत्यंत हृदयस्पर्शी लघुकथा  ।  प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।   

Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2018 at 11:06am
 प्रभापूर्ण सुंदर लघु कथा के  लिए बधाई 
Comment by Samar kabeer on June 20, 2018 at 10:21pm

जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब, आपकी लघुकथाएँ हमेशा मुझे पसन्द आती हैं,ये लघुकथा भी उसी श्रेणी की है, बहुत ख़ूब, इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service