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अक्सर मुझसे पूछा करती.... डॉ० प्राची

सपनों में भावों के ताने-बाने बुन-बुन

अक्सर मुझसे पूछा करती...

बोलो यदि ऐसा होता तो फिर क्या होता ?... और मौन हो जाता था मैं !

 

उसकी एक हँसी पर जैसे

अपने दोनों पंख पसारे,

ढेरों हंस उड़ा करते थे

बहती निर्मल नदी किनारे,

सतरंगी आँखों में बाँधे पूरा फाल्गुन

अक्सर मुझसे पूछा करती...

अगर न मिल पाते हम-तुम तो फिर क्या होता ?... और कहीं खो जाता था मैं !

 

मन-जीवन की सारी उलझन

यहाँ-वहाँ की अनगिन बातें,

बदल-बदल तस्वीरें जब-तब  

प्रश्न पहेली भौचक रातें,

बतकहियों में बच्चों जैसी करती ठुनठुन

अक्सर मुझसे पूछा करती...

मैं तुमको अच्छी लगती तो फिर क्या होता ?... मन ही मन इतराता था मैं !

 

अपने मन की तस्वीरों में

जाने कब मुझको गढ़ लेती,

अपने ठहरे कोलाहल में

जाने कब मुझको पढ़ लेती,

शब्दों में झींगुर के जैसी घोले झुनझुन

अक्सर मुझसे पूछा करती

प्रेम गीत बन जाते तुम तो फिर क्या होता ?... और उसी को गाता था मैं !

 

साँझ-सवेरे जागे-सोए

बस मुझको सोचा करती थी,

मेरा दिल भी ज़रा टटोले

सोच मुझे कोंचा करती थी,

सर्द रात में नर्म सुबह के जैसी गुनगुन

अक्सर मुझसे पूछा करती

सपनों में मिलने आते तो फिर क्या होता ?... और बहुत मुस्काता था मैं !

 

मैं भी आदी बन बैठा था

उसकी इन बेतुक बातों का,

उसको साथी मान चुका था

सूने दिन सूनी रातों का,

गूँज-गूँज मेरे अन्तः में बस उसकी धुन

अक्सर मुझसे पूछा करती

सपना यदि यह सच होता तो फिर क्या होता ?... बस उसका हो जाता था मैं !

 

 

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 13, 2022 at 6:20pm

बहुत बढ़िया रचना आदरणीय डॉ साहिबा...हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2022 at 7:27pm

अभियक्ति को सराहने हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ संजीव कुमार वर्मा जी 

Comment by Dr Sanjeev Kumar Verma on December 2, 2022 at 11:54am
उत्कृष्ट रचना

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 29, 2022 at 4:35pm

आपका आदेश सर झुका कर मान्य आदरणीय समर कबीर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 29, 2022 at 4:35pm

बहुत बहुत धन्यवाद आ० लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Samar kabeer on November 29, 2022 at 2:44pm

मुहतरमा डॉ.प्राची सिंह जी आदाब, अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

निवेदन है कि ओबीओ पर अपनी सक्रियता बढ़ाएँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2022 at 8:05am

आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई। 

कृपया ध्यान दे...

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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"अवश्य, आदरणीय."
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