For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड

वज़्न -1222 1222 1222 1222

ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
मुक़ाबिल तुमको पाकर हो गई कितनी गुलाबी ठंड

तुम्हारी याद की इक गुनगुनी सी धूप के दम पर
सुखाए कितने ग़म हमने बिताई कितनी भारी ठंड

अलावों की न थी कोई कमी उसको मगर फिर भी
ज़मीं ने देखकर सूरज को ही अपनी गुज़ारी ठंड

तुम्हारे प्यार के धागों की मैंने शॉल जब ओढ़ी
लगी है तब मुझे सारे हसीं मौसम से प्यारी ठंड

मैं अक्सर सोचती हूंँ काश फिर वो दिन पलट आएँ
तुम्हारा साथ दो कप चाय और वो हल्की हल्की ठंड

सुनो ! क्या तुम अभी भी पहले जैसे ही बिताते हो
मेरी ऊनी महब्बत से बुनी स्वेटर में सारी ठंड

तुम अपने गर्म एहसासों को लेकर लौट आओगे
कटी इस 'आरज़ू' में हर बरस मेरी ठिठुरती ठंड

-© अंजुमन 'आरज़ू'
स्वरचित व मौलिक

Views: 557

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Zaif on December 24, 2022 at 2:22pm

वाह, मुहतरमा आरज़ू जी, क्या अंदाज़ है!

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 21, 2022 at 7:38pm

आदरणीय Ravi Shukla जी सादर नमस्ते, सद शुक्रिया, आपका यह आशीर्वाद बना रहे

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 21, 2022 at 7:36pm

मोहतरम Tapan Dubey जी आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Ravi Shukla on December 20, 2022 at 1:24pm

आदरणीया अंजुमन 'आरज़ू' जी , उम्दा ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार करें I 

Comment by Tapan Dubey on December 18, 2022 at 12:52pm

 बहुत बहुत बधाई गजल की जानकारी तो मुझे बहुत कम है पर आज बहुत समय बाद ओबीओ पर लौटा हूँ और बड़ा अच्छा लगा आपकी गजल पड़ कर , हर शेर लाजवाब है खासतौर पर अलावों की न थी कोई कमी उसको........... और सुनो ! क्या तुम अभी भी पहले जैसे ही बिताते हो...... बहुत बहुत बधाई 

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 17, 2022 at 12:37pm

उस्ताद मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, बदलने की कोशिश करती हूं

बहुत-बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on December 16, 2022 at 6:21pm

//मिज़ाजी ठंड - बहुत अधिक मिज़ाज में रहने वाली, घमंडी से लिया था//

बात स्पष्ट नहीं हो रही है, इसके लिए 'मिज़ाज की ठंड' कहना होगा,ऊला बदलने का प्रयास करें । 

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 16, 2022 at 5:14am

उस्ताद मोहतरम समर कबीर साहब आदाब ग़ज़ल तक पहुंचने और ख़ूबसूरत इस्लाह के लिए बहुत शुक्रिया

मिज़ाजी ठंड - बहुत अधिक मिज़ाज में रहने वाली, घमंडी से लिया था मोहतरम

"अभी भी" अपनी बात पर ज़ोर देने के लिए लिया था, अभी तक करती हूं
बहुत-बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on December 14, 2022 at 3:55pm

मुह्तरमा अंजुमन 'आरज़ू' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड'--ये "मिज़ाजी ठंड" क्या होती है?

'सुनो ! क्या तुम अभी भी पहले जैसे ही बिताते हो'-- इस मिसरे में 'अभी' के साथ 'भी" शब्द का प्रयोग उचित नहीं होता इसे "अभी तक " लिखना उचित होगा I 

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 12, 2022 at 6:39am

मोहतरम Aazi Tamaam जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service