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भिखारी छंद - 24 मात्रिक - 12 पर यति
पदांत-गा ला

जब -जब सर्दी आती ,कब वृद्धों को भाती ।
गिरे  आँख  से पानी ,खाँसी  बहुत  सताती ।
रोटी  गिर -गिर  जाती ,चाल संभल न पाती ।
लड़ते-लड़ते  आख़िर ,काया चुप  हो  जाती ।
                         * * *
     ठहर जरा दीवानी , तेरी  उम्र  सयानी ।
     आशिक़ नज़रें घूरें, तेरी मस्त  जवानी ।
     अक्सर मीठे धोखे ,इन  राहों  पर होते ।
      पड़ न जाए महंगी , थोड़ी सी नादानी ।

            सुशील सरना / 25-12-22

                मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 428

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Comment by Sushil Sarna on December 31, 2022 at 1:58pm
आदरणीय समर कबीर जी आदाब, सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा और सुझाव का दिल से आभारी है सर । 'चाल संभल न पाती '12 मात्रा शेष सहमत एवं संशोधित
Comment by Sushil Sarna on December 31, 2022 at 1:51pm
आदरणीय बृजेश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by Sushil Sarna on December 31, 2022 at 1:51pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
Comment by Samar kabeer on December 30, 2022 at 2:28pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, छंदों का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'चाल संभल न पाती'--11 मात्रा?

'आशिक नजरें घूरे, तेरी मस्त  जवानी'

इस पंक्ति में 'घूरे' को "घूरें" कर लें ।

'पड़ न जाए महँगी'--11 मात्रा?

टंकण त्रुटियाँ:-

संभल--'सँभल'

आखिर--'आख़िर'

आशिक--'आशिक़'

नजरें--'नज़रें'

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 28, 2022 at 6:58pm

सुन्दर सरस छंद के लिए बधाई आदरणीय ...

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2022 at 8:54pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और समसामयिक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by Sushil Sarna on December 27, 2022 at 8:51pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 9:21am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे छंद रचे हैं। हार्दिक बधाई।

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