भिखारी छंद - 24 मात्रिक - 12 पर यति
पदांत-गा ला
जब -जब सर्दी आती ,कब वृद्धों को भाती ।
गिरे आँख से पानी ,खाँसी बहुत सताती ।
रोटी गिर -गिर जाती ,चाल संभल न पाती ।
लड़ते-लड़ते आख़िर ,काया चुप हो जाती ।
* * *
ठहर जरा दीवानी , तेरी उम्र सयानी ।
आशिक़ नज़रें घूरें, तेरी मस्त जवानी ।
अक्सर मीठे धोखे ,इन राहों पर होते ।
पड़ न जाए महंगी , थोड़ी सी नादानी ।
सुशील सरना / 25-12-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब सुशील सरना जी आदाब, छंदों का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'चाल संभल न पाती'--11 मात्रा?
'आशिक नजरें घूरे, तेरी मस्त जवानी'
इस पंक्ति में 'घूरे' को "घूरें" कर लें ।
'पड़ न जाए महँगी'--11 मात्रा?
टंकण त्रुटियाँ:-
संभल--'सँभल'
आखिर--'आख़िर'
आशिक--'आशिक़'
नजरें--'नज़रें'
सुन्दर सरस छंद के लिए बधाई आदरणीय ...
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे छंद रचे हैं। हार्दिक बधाई।
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