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मुश्किल में अपने इश्क़ की यूँ देखभाल कर।
अपने कहे का ,अपने लिखे का ख़्याल कर।
महसूस हो न दिल मे कभी उसकी याद तो,
अपने ज़मीर को जगा के सौ सवाल कर।
इक तरफा प्यार फिर भी बहुत कामयाब है,
खुद में ही उलझे रहना है सिक्के उछाल कर।
हम ही नहीं थे आपकी महफ़िल की रौशनी,
अच्छा किया है आपने दिल से निकाल कर।
ये चार दिन की बात तो मेरे लिए थी बस,
तू चाँदनी को रखना हमेशा संभाल कर।
कुदरत के इंतजाम में किसकी चली हुज़ूर,
मत आइने को देखके ज्यादा मलाल कर।
ये सर्द रात यूँ भी बहुत बेकरार है,
थोड़ा सा पानी रखले सुराही में डाल कर।
उन बेमिसाल लोगों को देना सुकून रब,
जो शेर कह रहे हैं कलेजा निकाल कर।
"अहसास" अब निकल भी आ ग़ज़लों की ज़ुल्फ़ से
कुछ नींद का या अपने बदन का ख्याल कर।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अच्छी ग़ज़ल कही भाई मनोज जी...बधाई
आदरणीय मुसाफिर साहब हार्दिक आभार
सादर
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब
सुधार का प्रयास करता हूँ
सादर
जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I
'कुदरत के इंतजाम में किसकी चली हुज़ूर,'
मत आइने को देखके ज्यादा मलाल कर'---- इस शे`र के ऊला में 'हुज़ूर" शब्द आदर सूचक है इसलिये शुतर गुरबा दोष है , सानी में सहीह शब्द "ज़ियादा" १२२ है , कई बार बता चुका हूँ I
आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
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