मेरी खूबसूरती श्राप है
मेरे पूर्व जन्म का पाप है
जितनों को मैंने छला होगा
ये उन सबका अभिशाप है
घर से निकल ना पाऊँ मैं
रास्ते पर चल ना पाऊँ मैं
कपड़े गहनों की बात हीं क्या?
अब खुले बाल में रहना मुश्किल है
थोडी चमक-दमक जो जाऊँ मैं
लाली, पाउडर जो लगाऊँ मैं
हो चौराहे पर भीड़ जमा
जो गली तक फिर के आऊँ मैं
अब पापा पीछे हीं चलते है
अब हाथ भी नहीं पकड़ते हैं
कितनों की नज़र टिकि मुझपर
बस यही देखते रहते हैं
भैया साथ मेरे तो चलते है
पर नज़र सभी पर रखते है
देख गली के लडकों को
आस्तीन खींचते रहते है
पर ये सब मुझे नहीं जचता
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
अनजानी आँखों में मुझको
अपना चेहरा नहीं सजता है
ना जाने कितने लडके अपने
सपनों में बुलाते मुझे बुलाते है
जगे में जो ना कर पाए
स्वप्न से सब कर जाते है
जिनको भी मैं मिल ना पाई
साथ मैं जिनके चल ना पाई
डोली मेरी जब निकली घर से
फिर जीवन उनको रास ना आई
उनमें से हीं आज किसी ने
मुझको यूं मजबूर किया है
काला साया डाल कर मुझपर,
अस्तित्व को मेरे दुर किया है
कोई ऐसा हीं है जिसने
मन हीं मन में ठान लिया है
ना रहेगा सुख से ना रहने देगा
ऐसा काला जादू मुझपर किया है
संग पति का जो छुट गया
तो घर मेरा लुट जायेगा
जाने कैसे फिर सुधरेंगे दिन
जो जीवन साथी ना अपनायेगा
अब मन ना मेरा साफ है
छल कपट और पाप है
सब है बस सुंदरता के कारण
मुझको लगता ये अभिशाप है
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
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