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कैसी ये पुकार है? कैसा ये अंधकार है 

मन के भाव से दबा हुआ क्यों कर रहा गुहार है? 

क्यों है तू फंसा हुआ, बंधनों में बंधा हुआ 

अपनी भावनाओं के रस्सी में कसा हुआ 

त्याग चिंताओं को अब चिंतन की राह धरो

स्वयं पर विश्वास कर दृढ़ हो आगे बढ़ो 

क्या हुआ जो सामने खड़ा कोई पहाड़ है 

थक कर ठहर ना तू यश उस पार है 



तोड़ बंधनों को आज मुक्त खुद को तुम करो 

कर दो तुम शंख नाद पथ स्वयं प्रशस्त करो 

जो भी मन में चल रहा सब भ्रम के समान है 

उसके अस्तित्व का ना कोई प्रमाण है 

मोह के भँवर में तुम गोते क्यों खा रहे 

पार पाने को तुम क्यों हाथ ना बढ़ा रहे 

जो भी संग है तेरे ना कोई संग जाएगा 

जिस तरह तू आया था बस अकेला जाएगा 

तू अगर चला नहीं उद्देश्य को ना पाएगा 

विश्व के पटल पर फिर ना नाम तेरा आएगा 

मन के हर कोने से अंधकार को निकाल

ज्ञान के प्रकाश पथ पर तिब्र कर अपनी चाल

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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