ग़ज़ल
1212 1212 1212 1212
सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से
मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से
निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से
वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से
रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में
मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से
हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है
ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से
निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं पर
हो वारिसों को गर्व भी तुम्हीं सहो सुजान से
प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर नमस्कार आप ग़ज़ल तक पहुँचे, इस हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ । "कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी है"
/मिटेंगे अंथकार // अंधकार/, यही एक मात्र टंकण त्रुटि है जो आपने भी दर्शायी है ।
//निशाना चूक जाए ना बचे रहे सुजान से // इसका भाव स्पष्ट नहीं हो पाया,
लक्ष्य से भटक ना जाएं, ऐसी सावधानी हमे सदैव बरतनी चाहिए, यही उक्त मिसरे का आशय है जो मिसरे से भी पूर्णतया स्पष्ट है।
//ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से //, शेर का सानी मिसरा जो ऊला के सन्दर्भ से ही पढ़ा जाएगा ।
//निशान छोड़ जाओ कोई वक्त कि शिलाओं पर // ''इसमें कोई शब्द अतिरिक्त लग रह है ।''
निशान छो 1212 ड़ जाओ को 1212 ई वक्त की 1212 शिलाओं पर 1212, कोई शब्द तो क्या वर्ण भी अतिरिक्त नहीं हैं ।
बशीर बद्र साहब कह गये है,
"मैं बोलता हूँ तो इलज़ाम है बगावत का
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी लगती है" सादर !
आ. भाई चेतन जी,सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी हैं। कुछ सुधार के साथ यह और निखर सकती है। यथा
/मिटेंगे अंथकार //अंधकार
//निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से// इसका भाव स्पष्ट नहीं हो पाया है।
//ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से// मैं इसका भाव समझ नहीं पाया।
//निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं पर// इसमें कोई शब्द अतिरिक्त लग रहा है।
सादर
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