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जिस को भी  कड़वे  लगे, बाबू जी के बोल
उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।
*
बाबू जी ने क्या  किया, कह  दे जो औलाद
समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।
*
बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस
उन के मन  में  चाह   बस, सन्तानें  हों पास।३।
*
सोचा सब के चैन  की, खुद  रहकर बेचैन
बैलों सा  जुतते  दिखे,  बाबू  जी दिन रैन।४।
*
देना  हर पल   चाहते, बच्चों   को  हर  चीज
पहनें चाहे नित्य खुद, सिलकर फटी कमीज।५।
*
बाबू जी की डाँट में, जिस ने देखी सीख
वो ही समझे जी  रहे, बाबू जी बन ईख।६।
*
कथा,कहानी,चुटकुले, घर भर मचता शोर
तजकर मुख के मौन को, लाते हँसी बटोर।७।
*
निकली अगर उदास हों, बाबू जी की जान
हँसते बच्चों से मिटी, दिनभर मिली थकान।८।
*
बेटे को  यूँ  बोलते, समझाइस की बात
बाबू जी की डाँट को, समझा बीती रात।९।
*
झूठी   पूजा  पाठ  सब, झूठी  हर अरदास
बाबूजी के बाद जो, अनबुझ मन की प्यास।१०।
****
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2024 at 9:10am

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2024 at 9:10am

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2024 at 9:09am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

पहले दोहे के चौथे चरण को इस प्रकार देखें - "अमृत बहुत अनमोल।"

Comment by Dayaram Methani on August 11, 2024 at 9:56pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत सुंदर सीख भरे दोहे। बधाई स्वीकार करें।

Comment by Aazi Tamaam on August 9, 2024 at 8:10pm

बहुत सुंदर दोहे हुए आ धामी सर बेहतरीन मैंने पाँच दोहे लिखे नानी याद आ गयी 😊

Comment by Sushil Sarna on August 9, 2024 at 3:20pm

आदरणीय जी बहुत सुंदर  और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई ।सर कृपया प्रथम दोहे का चतुर्थ चरण जाँच लें । दोहा 4 में चैन की की जगह चैन को कर लिया जाए तो अधिक  उपयुक्त रहेगा । यह मेरा विचार है । सादर नमन 

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