जिस को भी कड़वे लगे, बाबू जी के बोल
उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।
*
बाबू जी ने क्या किया, कह दे जो औलाद
समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।
*
बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस
उन के मन में चाह बस, सन्तानें हों पास।३।
*
सोचा सब के चैन की, खुद रहकर बेचैन
बैलों सा जुतते दिखे, बाबू जी दिन रैन।४।
*
देना हर पल चाहते, बच्चों को हर चीज
पहनें चाहे नित्य खुद, सिलकर फटी कमीज।५।
*
बाबू जी की डाँट में, जिस ने देखी सीख
वो ही समझे जी रहे, बाबू जी बन ईख।६।
*
कथा,कहानी,चुटकुले, घर भर मचता शोर
तजकर मुख के मौन को, लाते हँसी बटोर।७।
*
निकली अगर उदास हों, बाबू जी की जान
हँसते बच्चों से मिटी, दिनभर मिली थकान।८।
*
बेटे को यूँ बोलते, समझाइस की बात
बाबू जी की डाँट को, समझा बीती रात।९।
*
झूठी पूजा पाठ सब, झूठी हर अरदास
बाबूजी के बाद जो, अनबुझ मन की प्यास।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
पहले दोहे के चौथे चरण को इस प्रकार देखें - "अमृत बहुत अनमोल।"
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत सुंदर सीख भरे दोहे। बधाई स्वीकार करें।
बहुत सुंदर दोहे हुए आ धामी सर बेहतरीन मैंने पाँच दोहे लिखे नानी याद आ गयी 😊
आदरणीय जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई ।सर कृपया प्रथम दोहे का चतुर्थ चरण जाँच लें । दोहा 4 में चैन की की जगह चैन को कर लिया जाए तो अधिक उपयुक्त रहेगा । यह मेरा विचार है । सादर नमन
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