For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

.
कोई किसी से परिचय नहीं कराता
समय के साथ-साथ स्वयं परिचित होता जाता है हर अजनबी
नहीं रहती कोई इकाई बंद अपने आप में फिर
कहीं कुछ बनने लगता है
कहीं कुछ जनमने लगता है चुपचाप

ऐसा नहीं
अँधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी ही हो
चकचकाती इस उजली धूप से
बच पाने की इच्छा भी हो सकती है
वर्ना देखो उसकी आँखें
लाल डोरे की जालियाँ कितनी उलझती गई हैं, और
उलझाती गई हैं उसकी जाने कितनी वेगवती संभावनाएँ

यदि तुम्हारा अभिजात्य
इस परस्पर परिचय को महज़ एक जरिया समझता है
बेसाख़्ता आगे से आगे निकल जाने का महज़ एक सोपान
तो अफ़सोस..

यार,
शीशों मढ़ी इस रंगीन तस्वीर के साथ तब
कहीं कुछ और भी दरकता है / टूटता है बहुत गहरे
जिसे नहीं सुनते कोई कान
सुनती हैं तो बस पनियायी आँखें
और जवाब फिर नहीं देते कुछ शब्द
देती हैं तो उजबुजायी आँहें
जिनकी तासीर मज़ाक नहीं होती कभी
मज़ाक नहीं होती.

--सौरभ

Views: 369

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 29, 2010 at 12:15am
अभिनन्दन राणाप्रताप.
परिचय के कुछ आयाम और उन आयामों के कुअ अपने किस्से.. जो होता है वो होता ही हो ऐसा नहीं.. ... .रज्ज्वाँभुजञ्गमिव.. जैसे ही .. .. प्रतिभासितं वै.. और, एक बार चित्त के विचार जागरुक हो गए तो फिर और कोई भ्रम नहीं रह जाता. ..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 28, 2010 at 10:31pm
सौरभ सर एकदम दिल निकाल कर रख दिया है आपने सबके सामने.............. जीवन में बरबस ही बने अनजाने रिश्ते...किसी बनावटी अपनेपन के मोहताज़ नहीं होते.....और एक बात आपने बिल्कुल सत्य कही है.......दूसरे के कंधे पर चढ़कर दीवार लांघना सबसे बड़ा कुकृत्य है......जब ऐसा होता है तो कष्ट का होना तो लाज़मी है.....और आपके ही शब्दों में .."जिनकी तासीर मज़ाक नहीं होती कभी" ....कुल मिलकर इतना कह सकता हूँ ..संवेदनाओं से ओतप्रोत एक उत्कृष्ट रचना पढ़ रहा हूँ.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2010 at 7:38pm
धन्यवाद सतीशजी.. सहयोग बनाए रखें.
-सौरभ
Comment by satish mapatpuri on July 28, 2010 at 4:48pm
ऐसा नहीं
अँधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी ही हो
चकचकाती इस उजली धूप से
बच पाने की इच्छा भी हो सकती है
वर्ना देखो उसकी आँखें
लाल डोरे की जालियाँ कितनी उलझती गई हैं, और
उलझाती गई हैं उसकी जाने कितनी वेगवती संभावनाएँ
श्रद्धेय पाण्डेय जी, आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ. आपने बहुत ही सुन्दर रचना प्रस्तुत की है. मेरा अभिवादन सहित साधुवाद स्वीकार करें.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2010 at 8:45am
गणेशजी, अभिनन्दन. सहयोग बनाए रखिएगा. धन्यवाद.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 27, 2010 at 9:22pm
ऐसा नहीं
अँधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी ही हो
चकचकाती इस उजली धूप से
बच पाने की इच्छा भी हो सकती है,

परिस्थितियों का खुबसूरत समावेश , अच्छी रचना और सुंदर प्रस्तुति , धन्यवाद,
Comment by Admin on July 27, 2010 at 9:14pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,
प्रणाम,
सर्वप्रथम ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर मैं आपके पहले ब्लॉग का ह्रदय से स्वागत करता हूँ , आपने अच्छी रचना प्रस्तुत की है इसके लिये दिल से धन्यवाद, उम्मीद करते है कि आप के सहयोग और सानिध्य मे OBO परिवार प्रगति के पथ पर अग्रसरित रहेगा,
सादर
ADMIN
OBO

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service