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ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये

ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये

मत फलक पर चाँद तारे बोइए ,

रख परे सपनों को चुपकर सोइए |

 

है बहुत आसान टीका टिप्पणी ,

आईने से पेश्तर मुंह धोइए |

 

मछलियों का रूप आकर्षक है पर ,

तलहटी में मूंगे मोती टोइए |

 

अब सियासत का कोई मकसद नहीं ,

नोट के बदले में इज्ज़त खोइए |

 

आज चौराहे पे सच की लाश है ,

और घर घर में रूई के लोइए |

 

 

डर से मुश्किल है रहूँ खामोश मैं ,

आप ही ऐसी रवायत ढोइए |

 

हाथ खाली ही चले जाना मियाँ ,

किसकी खातिर और क्योंकर रोइए |

 

दर्द की कीलें भी देती हैं सुकून ,

आप ईसा की तरह तो होइए |

 

                           - अभिनव अरुण

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on September 6, 2011 at 12:37am

वाह वाह वाह इन दो शेर ने तो ऐसा बाँधा लिया है कि आगे बढ़ने का मन ही नहीं कर रहा था

बहुत खूब अभिनव जी

मत फलक पर चाँद तारे बोइए ,

रख परे सपनों को चुपकर सोइए |

 

है बहुत आसान टीका टिप्पणी ,

आईने से पेश्तर मुंह धोइए |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 14, 2011 at 8:35pm

दर्द की कीलें भी देती हैं सुकून ,

आप ईसा की तरह तो होइए |

 

अभिनव भाई, बेहद गंभीर प्रकृति की ग़ज़ल कही है आपने , दाद कुबुल किजिये |

Comment by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 7:06pm

पुनः एक बार आभार .... ह्रदय से ! गुरु जी आपका स्नेह बना रहे !!

Comment by Rash Bihari Ravi on August 12, 2011 at 6:58pm

दर्द की कीलें भी देती हैं सुकून ,

आप ईसा की तरह तो होइए |

kya bat hain sir ji bahut sundar

 

Comment by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 6:50pm
बहुत बहुत शुक्रिया सतीश जी रचना आपको पसंद आयी मैं धन्य हुआ !!
Comment by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 1:15am

हाथ खाली ही चले जाना मियाँ ,

किसकी खातिर और क्योंकर रोइए |

धन्यवाद अभिनवजी, बहुत खुबसूरत ख्याल है I

Comment by Abhinav Arun on August 9, 2011 at 8:52am
शुक्रिया आशीष जी इस त्वरित प्रतिक्रिया के  लिए !! और आपका शेर भी बहुत ख़ूब है !! ढेरों शुभकामनाएं !!
Comment by आशीष यादव on August 9, 2011 at 8:13am

kuchh isi bahar par tippani ka prayaas kiya hu.

margdharshan kare.

इस ग़ज़ल में सच में गूढ़ तत्व है|
पढ़ के पाए मोति, ना पढ़ कर खोइए||

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