For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले

ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले

 

हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले ,

ज़रा सोचना तिलमिलाने से पहले |

 

मोहब्बत से तौबा तो कब का किया  है ,

संभलना भला चोट खाने से पहले |

 

सियासत के रंग में सभी रंग गए हैं ,

गले मिल रहे दिल मिलाने से पहले |

 

गिरेबाँ में अपने ज़रा झाँक लेना ,

किसी दोस्त को आज़माने से पहले |

 

वो अक्सर हवाओं के रुख़ देखता है ,

पतंगों से पेंचें लड़ाने से पहले |

 

घरों से सभी पिंजरों को हटा दो ,

परिंदों को दाना खिलाने से पहले |

 

नहीं जानना आसमाँ की ऊँचाई ,

मेरे पंख के फड़फड़ाने  से पहले |

 

सलीके के दो चार मिसरे सुना दो ,

उन्हें तुम अलिफ़ बे पढ़ाने से पहले |

 

                               -  अभिनव अरुण

 

 

 

 

Views: 779

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on January 28, 2012 at 1:50pm
अश्वनी जी हार्दिक आभार आपका !! स्नेह बना रहे !! 
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on January 24, 2012 at 10:58pm

bahut khoob gazal kahi hai janaab .......kshama chahta hun der se dekhne ke liye 

Comment by Abhinav Arun on January 4, 2012 at 2:18pm
हार्दिक आभार आदरणीय श्री अजय कुमार जी रचना को आपने सराहा !! 
Comment by AjAy Kumar Bohat on January 4, 2012 at 11:41am
wah wah bahut khoob Abhinav ji
Comment by Abhinav Arun on October 10, 2011 at 11:50am

शुक्रिया श्री श्यामल जी !!आपका स्नेह बना रहे !!

Comment by Shyam Bihari Shyamal on October 10, 2011 at 6:55am

सियासत के रंग में सभी रंग गए हैं ,

गले मिल रहे दिल मिलाने से पहले |

...वाह... भाई अभिनव अरुण जी... बहुत जीवंत गजल... बधाई... 

 

Comment by Abhinav Arun on September 7, 2011 at 6:39pm
thanks Fauzan ji apne hauslaafzai ki.
Comment by fauzan on September 7, 2011 at 3:52pm

वो अक्सर हवाओं के रुख़ देखता है ,

पतंगों से पेंचें लड़ाने से पहले |

 

घरों से सभी पिंजरों को हटा दो ,

परिंदों को दाना खिलाने से पहले |.............waaaaaaaaaaaaaaaaaah.............zabardast......kya kahna..........

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2011 at 12:23pm

abhaar aashish जी ! आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा प्रयास सार्थक हुआ |

Comment by आशीष यादव on August 20, 2011 at 9:43am

सियासत के रंग में सभी रंग गए हैं ,

गले मिल रहे दिल मिलाने से पहले |

सलीके के दो चार मिसरे सुना दो ,

उन्हें तुम अलिफ़ बे पढ़ाने से पहले |

अरुण सर, बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने| मुझे हर शे'र पसंद आया|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service