For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,

माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से,
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों ,

( अजाब = दर्द , आब = पानी , नासाज = असहमत )

Views: 916

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vipul Kumar on June 25, 2012 at 9:22am

hmm...... Ganesh jee. maiN shayad kaafi waqt baad padh raha huN is ghazal ko. ab talak to aapko iske sabhi aib pata lag gaye honge. ya aap ijazat deN to maiN aagah karuN?


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 17, 2011 at 11:59am
धन्यवाद आशा दीदी |
Comment by asha pandey ojha on July 17, 2011 at 10:45am

bahut bhawatmk w dard se labrej bhawabhivykti Ganesh bhiya

 

Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 27, 2011 at 5:26am

अत्यंत प्रभावोत्पादक "बागी जी"

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,
Comment by Madhuram Chaturvedi on November 10, 2010 at 4:58pm
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,
kya baat hain
Comment by Pooja Singh on September 29, 2010 at 12:10pm
गणेश जी ,
प्रणाम बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति है यह की {कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,} आपने बिलकुल सही कहा है , की ये जिन्दगी कई जन्मो के बाद मिलती है | इसलिए इस जिन्दगी को सही अर्थो में लगाया जाय| बढिया रचना है यह बधाई स्वीकार करे |
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 25, 2010 at 2:30pm
बागी जी , गज़ल मैंने पूरी पढ़ी है ,,, लेकिन कभी मजाक भी समझा करो मेरे दोस्त ... हर वक़्त मुंह लटकाकर जीना भी तो ठीक नहीं ... ;-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2010 at 2:16pm
जोगिन्दर भाई, धन्यवाद, एक बार फिर से पूरी ग़ज़ल पढ़ ले,
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 25, 2010 at 2:05pm
बागी भाई ,,, प्याले की मुहब्बत ,,, आप भी कमाल करते हो दोस्त , पीकर भी इतना कह पाना कैसे कर पाए ? हा हा हा ...
Comment by BIJAY PATHAK on August 12, 2010 at 2:03pm
मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,
Bahut khub 2 lajawab
Ek behtarin prastuti ke saath sandesh bhi

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
11 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
22 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service