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हाल- ए- दिल ऊंचे महलों से पूछो जरा,
मस्तियाँ बादलों की कैसी उन्हे लगती हैं,

जब सावन की पहली पड़ती फुहार,
धरा ख़ुशी से सोंधी खुशबू बिखेरती,
बच्चे उछलते कूदते मचलते खेलते,
चेहरे किसानो के उम्मीदों से चमकते,

हाल- ए- दिल झोपड़ियो से पूछो जरा,
आंशु बन बारिश छपरों से टपकती है,

खूब बारिश हुई भरी नदिया और ताल ,
मचलती तितलियाँ भी आँचल संभाल,
हवाओं को भी देखो चलती मदभरी,
दीवाना बनाने को हमें हठ पर अड़ी,

हाल- ए- दिल उन बस्तियों से पूछो जरा,
जिन्दगी जिनकी किनारों पर गुजरती हैं,

जवान होती है शहरो की नशीली रात ,
आँखों आँखों में कटती कही काली रात,
तेज धुन पर कही आहा करते है लोग ,
भय के कारण कही आह करते है लोग,

हाल- ए- दिल भूखे बच्चों से पूछो जरा,
गीले चूल्हों मे जब भींगी लकड़ियाँ जलती है,

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Comment

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Comment by Shaileshwar Pandey ''Shanti'' on September 25, 2010 at 6:29pm
Bahut badiya...
Comment by asha pandey ojha on September 24, 2010 at 11:08pm
खूब बारिश हुई भरी नदिया और ताल ,
मचलती तितलियाँ भी आँचल संभाल,
हवाओं को भी देखो चलती मदभरी,
दीवाना बनाने को हमें हठ पर अड़ी,bahut bahut sundar rachna ... ek ek alfaz jaise moti jade hon jaise .. waah Ganesh bhiya

हाल- ए- दिल उन बस्तियों से पूछो जरा

जिन्दगी जिनकी किनारों पर गुजरती हैं,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 24, 2010 at 9:03am
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय पंकज सर,बड़े भाई बिजय पाठक जी, गुरु जी , नविन भईया,परम मित्र सतेन्द्र उपाध्याय जी, दुष्यंत सेवक जी. जोगिन्दर भाई, अनुज रितेश सिंह जी आप लोगो का प्यार और आशीर्वाद पाकर मैं अभिभूत हूँ , यह सब आप लोगो का दिया गया हौसलाफजाई ही है कि मैं कुछ लिख पाता हूँ , पुनः आप सब को इस महत्वपूर्ण और बहुमूल्य टिप्पणी हेतु धन्यवाद,
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 24, 2010 at 12:16am
हाल- ए- दिल उन बस्तियों से पूछो जरा, जिन्दगी जिनकी किनारों पर गुजरती हैं ...
बागी जी ,,, परिस्थितियों के चूल्हे में सेंक कर निकली है आपकी यह कविता ... बहुत सुन्दर ...
Comment by ritesh singh on August 22, 2010 at 12:39pm
हाल- ए- दिल ऊंचे महलों से पूछो जरा,
मस्तियाँ बादलों की कैसी उन्हे लगती हैं,



हाल- ए- दिल झोपड़ियो से पूछो जरा,
आंशु बन बारिश छपरों से टपकती है,


हाल- ए- दिल झोपड़ियो से पूछो जरा,
आंशु बन बारिश छपरों से टपकती है,

हाल- ए- दिल भूखे बच्चों से पूछो जरा,
गीले चूल्हों मे जब भींगी लकड़ियाँ जलती है

bahut hi achhe dhang se likhe hai ganesh ji...
masti..samvedna sabkuch hai..isme..
Comment by Rash Bihari Ravi on August 12, 2010 at 2:07pm
bahut badhia
Comment by BIJAY PATHAK on August 12, 2010 at 2:00pm
तेज धुन पर कही आहा करते है लोग ,
भय के कारण कही आह करते है लोग,

हाल- ए- दिल भूखे बच्चों से पूछो जरा,
गीले चूल्हों मे जब भींगी लकड़ियाँ जलती है,
Ganesh ji,
Gazab ba bhai aap ke kavita ,sahi likhat rahi
Bijay Pathak
Comment by दुष्यंत सेवक on August 11, 2010 at 10:25pm
waah waah bagi ji, yatha naam tatha gun....kavita apki ek antrdvandva paida karti hai, barish ka ujla aur syah paksh.....behtareen prastuti.....visheshkar apki kalam se yani ki obo ke mayne me kahu to swayam bramha ne aj likha hai :) badhai sweekaren ......
Comment by Pankaj Trivedi on August 11, 2010 at 7:32pm
हाल- ए- दिल भूखे बच्चों से पूछो जरा,
गीले चूल्हों मे जब भींगी लकड़ियाँ जलती है,

बहुत ही अर्थपूर्ण कविता | बधाई | अब मुझे ओपन बुक पर देखोगे मेरे भी !
Comment by Satyendra Kumar Upadhyay on August 11, 2010 at 4:36pm
जब सावन की पहली पड़ती फुहार,
धरा ख़ुशी से सोंधी खुशबू बिखेरती,
बच्चे उछलते कूदते मचलते खेलते,
चेहरे किसानो के उम्मीदों से चमकते,

Wah Bhai ji, gajab. Hamara ta aapan Gaon lauke lagal. Bachpan ke yaad taza kar deni. Jab Buni pare ta charo taraf se sondhi sondhi khushabu aawe lage. ab u kaha naseeb me baa

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