For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.

 

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

 

घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,

आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.

 

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी, 

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 811

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 7, 2011 at 12:02am

भाई दुष्यंत सेवक जी ! आपका तहे दिल से शुक्रिया दोस्त !

Comment by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 11:56pm

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी,

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

ज़हेनसीब ................... मैं तो बस यही कह सकता हूँ श्रीवास्तव साहेब ..................... लाजवाब

Comment by दुष्यंत सेवक on September 6, 2011 at 2:53pm

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

मैं खुद को रिलेट कर गया अंबरीष भैया...बेहद सुंदर प्रस्तुति बहुत बधाई आपको

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:08pm

स्वागत है भाई "अभिनव" जी ! आप जैसे विद्वान की सरहना मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती है ! इस हेतु हम आपका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं ! :-)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:06pm

स्वागत है आदरणीय शर्मा जी ! आपकी यह तारीफ दिल में एक नया जोश पैदा कर देती है | इस खातिर तहे दिल से आपका शुक्रिया ! :-)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:04pm

स्वागत है भाई आशीष जी! सराहना करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ! इस बहर पर शेर कहने का अवसर इसी मुशायरे में जीवन में पहली बार अपने ओ बी ओ पर  ही मिला! शुरुआत में तो इसकी धुन समझ में ही नहीं आयी! फिर भाई बागी जी से वार्तालाप के उपरांत इसकी धुन स्पष्ट हुई फिर मुशायरे में गजलों का दौर जो शुरू हुआ तो इसके राज खुलते गये और परिणाम के रूप में दो गजलों के साथ साथ यह तीसरी ग़ज़ल भी आप सभी के सम्मुख आ गयी ! इसका सम्पूर्ण श्रेय आप सभी ओ बी ओ मित्रों को ही जाता है जिनकी संगत में यह ग़ज़ल कही जा सकी ! वास्तव में ओ बी ओ पर साहित्य का भरपूर खजाना है जो कि हममें से किसी एक के पास न होकर हम सभी के मध्य परस्पर बँटा हुआ है ! :-)

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2011 at 8:36pm

""आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.""

वाह बहुत खूब !! जानदार ग़ज़ल !!!
Comment by Kailash C Sharma on September 5, 2011 at 8:27pm

आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

.... बहुत खूबसूरत गज़ल । हरेक शेर उम्दा...

Comment by आशीष यादव on September 5, 2011 at 5:31pm

इश्क पे जोरदार अशआर कह गए आप|
हर शे'र मुकम्मल|
अंतिम वाला शहीदों को समर्पित शे'र का अंदाज बहुत अच्छा लगा|

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:36pm

स्वागत है भाई रवि गुरू जी ! अशआर की तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
3 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service