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तिरंगे को सम्मान

माना की तुम भूल गए हो ,
दिलों दिमाग से खुल गए हो |
वो भी कुछ कम नहीं थे ,
पर दिमाग में उनके बल नहीं थे
तीन रंग उनकी कमजोरी थी ,
खेली खून की होली थी |
वो कहते ये चिर है माँ का ,
शहीद हुए जो धीर थे माँ का ,
जिसके लिए वो जान गवां दी
अपनी माँ की वस्त्र बचा दी
इसको थोड़ी पहचान दो ,बेटे
तीन रंग को सम्मान दो ,बेटे !!
.....रीतेश सिंह

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Comment

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Comment by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:45pm
मनोज जी ,नीलम जी ,राणाप्रताप जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ..
Comment by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:43pm
बहुत बहुत धन्यवाद admin.ji..
Comment by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:42pm
बहुत बहुत धन्यवाद गणेश जी ..
आपको मेरी ओपन बुक्स की पहली रचना पसंद करने के लिए ..
Comment by Neelam Upadhyaya on August 16, 2010 at 2:29pm
तीन रंग उनकी कमजोरी थी ,
खेली खून की होली थी |
वो कहते ये चिर है माँ का ,
शहीद हुए जो धीर थे माँ का ,

बहुत ही सुन्दर रचना है ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 15, 2010 at 7:33pm
सुन्दर रचना..सुन्दर सन्देश.....स्वतंत्रता दिवस के राष्ट्रीय पर्व की ढेरो शुभकामनाये|
Comment by Admin on August 15, 2010 at 12:30pm
आदरणीय रितेश सिंह जी, प्रणाम,
सर्वप्रथम स्वतंत्रता दिवस की बधाई स्वीकार करे, ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहली रचना का ह्रदय से स्वागत है, अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने, आगे भी आपकी रचनाओं का इन्तजार रहेगा, इसी तरह मोहब्बत बनाये रखे, धन्यवाद,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 15, 2010 at 10:16am
इसको थोड़ी पहचान दो ,बेटे
तीन रंग को सम्मान दो ,बेटे !!
वाह रितेश जी वाह, जबरदस्त रचना दी है आपने, मेरे ख्याल से यह ओपन बुक्स ऑनलाइन पर आपकी पहली रचना है, पहले ही आगाज मे आप ने अपनी कलम की तीखी धर दिखा दी है, सुंदर और ससक्त अभिव्यक्ति, स्वतंत्रता दिवस की और इस सुंदर रचना पर बधाई स्वीकार करे,

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