For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ritesh singh's Blog (5)

नारी -सम्मान

मात्री भगिनी भार्या रूप नारी

मान जिनका अब खो रहा

ठहाका लगा रहा दुराचारी

क्यों दुयोधन हो रहा

                                                        
निर्मल मन सरल कोमल

करुना धारा वो कल- कल

गले लगा सब गरल जल

पालन करती तेरा पल -पल

निर्मम कांटे क्यों बो रहा

क्यों दुयोधन हो रहा



साक्ष्य तुझे मैं क्या दूँ 
तू नर है , महा बलधारी 
पौरुष फिर भी ,तेरा तोल  दूँ 
उदित करती तुझे वो…
Continue

Added by ritesh singh on December 24, 2012 at 11:00am — 6 Comments

वीर --पथ और मंजिल

गिरने से क्यों डर रहा

चलना तो तुझी को वीर |

डूबने से क्यों डर रहा

तबियत से लहरें तो चीर |



मार्ग तो प्रशस्त है

तो काहे की बिडम्बना

आए अगर विषमता

दिखा दे अपनी आकुलता

बेचैनी और व्याकुलता



याद कर अपनी मकसद को

झोंक दे उसमे खुद को

जलने से क्यों डर रहा

बहा दे उस अनल पे नीर



सुर तू ही शोर्य है

तू ही वो किरण है

कर्म पथ पे चल जरा

कहा तेरे चरण है

बेधने से क्यों डर रहा

फाड़ दे उस घटा की… Continue

Added by ritesh singh on August 23, 2010 at 4:30am — 2 Comments

सावन की चांदनी रात

सावन की ये अंजोरिया

झिलमिलाते चाँद -तारे

बादलों की आड़ से

लुक्का छिप्पी खेलते सारे

हलके हलके घनो से

हल्की बूंदों की रिमझिम

हर्षित मन को लगते न्यारे





शनै: शनै: पवन के झोखे

नीम पीपल आम के पत्ते

झींगुर के साथ और रतजगे

मिलकर किए निर्मित

कर्णप्रिये ध्वनि है मिश्रित





बसुधा से मिलन को बेताब

वो बूंद अम्बर से

आकर पत्तों पर गिरती

तब धरा को सर्वस्व मानकर

उससे आलिंगन करती

धरा और नभ के मिलन… Continue

Added by ritesh singh on August 21, 2010 at 4:11pm — 3 Comments

अलबेला राही

चल रहा है पग पर राही
अकेला है ,अलबेला है
मंद कर तू पग रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
कहने को तू मौजी है अल्हड ,बेपरवाह
क्या जल्दी है बोल रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
जरा कर पीछे लोचन रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
अपने तेरे छुट गए है
क्यों दोस्त क्या तेरे कोई नहीं है
जीवन रस में पग रे राही
क्यों अकेला है ,क्यों अलबेला है ?

......रीतेश सिंह

Added by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:30pm — 3 Comments

तिरंगे को सम्मान

माना की तुम भूल गए हो ,
दिलों दिमाग से खुल गए हो |
वो भी कुछ कम नहीं थे ,
पर दिमाग में उनके बल नहीं थे
तीन रंग उनकी कमजोरी थी ,
खेली खून की होली थी |
वो कहते ये चिर है माँ का ,
शहीद हुए जो धीर थे माँ का ,
जिसके लिए वो जान गवां दी
अपनी माँ की वस्त्र बचा दी
इसको थोड़ी पहचान दो ,बेटे
तीन रंग को सम्मान दो ,बेटे !!
.....रीतेश सिंह

Added by ritesh singh on August 15, 2010 at 8:39am — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service