अदब के साथ जो कहता कहन है
वो अपने आप में एक अंजुमन है
हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है
हुई है दिल्लगी बेशक हमीं से
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है
अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है
नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है
खिले हैं फूल मिट्टी है महकती
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है
कहाँ परहेज मीठे से हमें अब
वो कहता यार यह तो आदतन है
ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है
तुम्हारे हुस्न में फितरत गज़ब की
तभी चितवन में 'अम्बर' बांकपन है
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
वाह क्या बात है अम्बरीश जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल .. और इस शेर के क्या कहने ..
ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है
हमें शिकवा नहीं है आपसे जी
हुआ अच्छा ज़माने का चलन है........हा हा हा हा :-)))))))))))))))
अजी क्या आपसे ऐसा, रे बप्पा !
बड़ा ही कातिलाना बांकपन है ... ;-P
.... हा हा हा हा ... ..
तारीफ के लिए शुक्रिया भाई सौरभ जी!
सादर:
मिटी तस्वीर दिल से यार की जो
हमें गम औ ज़माने को जलन है ......:-)))))))))))))))
स्वागत है भाई वीनस जी! इस अंदाज़ में ग़ज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !...:-)))
आपकी नयी ग़ज़ल, भाई अम्बरीषजी, हिंडोल मचा रही है ! .. :-)))))
इस शे’र के साथ सादर बधाई --
न आये सामने वो यूँ नज़र फिर
बसे मन में, कला, वर्ना चुभन है. ..
वाह वाह वा ...
अम्बरीष जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है
मतला से मकता तक हर एक शेर सुन्दर कहन से भरपूर है
हार्दिक बधाई व तहे दिल से दाद कबूल करें
ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है
उफ्फ्फ्फ़
स्वागत है भाई आशीष जी ! इसकी तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया! बस यूं की कुछ कहने का मन हुआ तो यह फ़ौरी ग़ज़ल हो गयी ! :-)
वाह अम्बरीश सर,
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