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shandar ......
shukriya vikram sahab.... aapne is lekhni ko naman kiya hai to mera b aapki muhabbato ko naman hai jisse aapne nawaza hai
इस सुंदर रचना को पढ़के वाह !! और आह !! दोनों ही स्वतः मुंह से निकाल गया .........आपकी की लेखनी को नमन है :)
shukriya rohit ji aapne apne ta assurat diye is kalam par...
ये तवायफ कौन है ? हमारा ही एक अंग जिससे हम दिन में नफरत करते है और रात के अंधेर में प्यार. पर हम आम्रपाली के दिवानों के जैसे न तो उससे नफरत ही कर सकते हैं और न उससे प्यार ही कर सकते हैं, खून बहाना और अपना बना लेना तो दूर की कौरी है, जिसके बारे में हम सोचना भी गवारा नहीं करते. शायद इस कमी को पाटा जाना चाहिए.
bahut bahut shukriya aadarniya sampadak ji
bahut achcha laga aapne haunsla afzai farmayi...aapka behad behad shukriya..
actually ye geet maine kafi time pehle ravi kumar guru ji k kehne pe likha tha jisme unhone theme de thi k ek majboor tawayaf...ittefaq se unki team ko pasand nahi aa paya ..
chaliye aap sabhi ne muhabbat se nawaza...........iska shukrguzar hu..........bahut bahut...
shukriya saurabh pandey ji aapka jo aapne in bhavo ko samjha
behad shukrguzar hu aapka
विवशता, उत्तरदायित्त्व, वातावरण और मनोदशा के साथ-साथ सामाजिक विडंबनाओं का प्रतिफल अपने होने का कारण ढूँढती दीख रही है, जिसके प्रच्छवास से निकलती आह को स्पष्ट सुना जा सकता है. उस अवश की मनोदशा का बेहतर चित्रण हुआ है.. एक बेहतर शब्द-चित्र !
शुभेच्छा हिलालजी ..
//अपनी पायल मुझे ज़ंजीर नज़र आती है----कितनी बदली हुई तकदीर नज़र आती है !!//
यह एक पंक्ति पूरे हालत को बयान कर रही है, बहुत खूब हिलाल जी !
bahut bahut shukriya ambrish ji aapne b dil khush kar diya itni muhabbat bhari daad se mujhe nawaz ker
behad behad shukriya
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