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बाल गीत: माँ का मुखड़ा -- संजीव वर्मा 'सलिल'

बाल गीत

माँ का मुखड़ा

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
*
सुबह उठाती गले लगाकर,
नहलाती है फिर बहलाकर,
आँख मूँद, कर जोड़ पूजती ,
प्रभु को सबकी कुशल मनाकर. ,
देती है ज्यादा प्रसाद फिर
सबकी नजर बचाकर.

आँचल में छिप जाता मैं ज्यों
रहे गाय सँग बछड़ा.
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा.
*
बारिश में छतरी आँचल की ,
ठंडी में गर्मी दामन की.,
गर्मी में साड़ी का पंखा-,
पल्लू में छाया बादल की !
कभी डिठौना, कभी आँख में कोर बने काजल की..

दूध पिलाती है गिलास भर -
कहे बनूँ मैं तगड़ा. ,
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
*******

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Comment by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2010 at 8:17pm
Aap sabko bahut-bahut dhanyavad.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 29, 2010 at 10:25am
बहुत ही खूबसूरत बाल गीत है आचार्य जी, इस दुनिया मे अभी तक माँ से सुंदर शब्द बना ही नहीं |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 28, 2010 at 10:49pm
बहुत सुन्दर बाल गीत| माँ तो माँ ही होती है|
Comment by Pankaj Trivedi on August 28, 2010 at 8:21pm
सलिल साहब,
आपने तो माँ का ये बालगीत कितनी सरल भाषा में बारीकियों से बुना है ...! बचपन को लौटाने के लिएँ धन्यवाद

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