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तुम्हे शिकायत है

इस गहरे अँधेरे से ,

पर क्या तुमने कोशिश की

एक दिया जलाने की ?

या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर

बनाया कोई सुरक्षा घेरा

कुछ जलते दीयों को

हवा से बचाने के लिए ?

 

नही न ?

 

कोई बात नहीं !

अभी सूखा नही है

समय का फूल !

 

चलो ढूँढे !

समंदर में डूबे सूरज को ,

इकठ्ठा करें

एक मुट्ठी धूप ,

उछाल दें पर्वतों पर ,

घाटियों में भी !

खिला दें

मुरझाते फूलों को !

 

कुछ तो पिघले ,

गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी

ओस की बूंदें !

और पहुंचे

नर्म नंगी दूब तक !

 

वो दर्द

जो ठंडी हवाओं ने बढ़ा दिया है

कुछ तो कम हो !

 

 

 

 

..................................... अरुन श्री !

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Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on January 6, 2012 at 11:45am

महीने की सर्वश्रेष्ठ रचनाकार बनने पर आपको अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि' की तरफ से हार्दिक  बधाई .......................

Comment by Nazeel on January 6, 2012 at 11:18am

बहुत सुंदर रचना है अरुण भाई जी .... हार्दिक बधाई  स्वीकारें ...:)

Comment by Arun Sri on January 6, 2012 at 10:24am

मेरी इस रचना को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार दिया गया ! मुझे इसकी बिल्कुल उम्मीद नही थी ! अत्यंत प्रसन्नता के साथ मैं धन्यवाद देना चाहूँगा उन सब को जिन्होंने मुझे इस योग्य समझा !

Comment by Shyam Bihari Shyamal on January 1, 2012 at 6:31am

वाह...  अच्‍छा प्रयास...  कवि को बधाई-शुभकामनाएं... 

Comment by AK Rajput on December 24, 2011 at 10:17am

''चलो ढूँढे !

समंदर में डूबे सूरज को ,

इकठ्ठा करें

एक मुट्ठी धूप ...
सार्थक रचना के लिये बधाई

 

Comment by आशीष यादव on December 23, 2011 at 6:00pm

aadarniy shri ARUN SHRI ji, ek nayi aashawadi kawita likhi aapne.

bahut sundar bhaw liye hue hai. badhai.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2011 at 3:30pm

मैं वस्तुतः पिछले पखवारे से दौरे पर हूँ, अतः इस मंच पर रेगुलर नहीं रह पा रहा हूँ. 

 

Comment by Arun Sri on December 23, 2011 at 12:34pm
सौरभ सर , आपकी प्रतिक्रिया प्रतीक्षित थी ! प्रसन्नता के साथ धन्यवाद आपको !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2011 at 9:38am

आशावादिता की अतंर्धारा लिये कविता बहुत कुछ कहती जाती है.

एक सार्थक रचना के लिये बधाई.

 

Comment by Shanno Aggarwal on December 20, 2011 at 6:16am

बहुत खूबसूरत रचना.

''चलो ढूँढे !

समंदर में डूबे सूरज को ,

इकठ्ठा करें

एक मुट्ठी धूप ,

उछाल दें पर्वतों पर ,

घाटियों में भी !

खिला दें

मुरझाते फूलों को !''

 

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