For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेटियाँ – छन्न पकैयावली

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !

 

 

छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी

सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी

 

छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका

छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका 


 

छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर भरमाए

और पराया धन कह कर उसको परदेश पठाए

 

छन्न पकैया छन्न पकैया छोड़ा पी का आंगन

नई बहुरिया नव आंगन में ढूंढ रही अपनापन

 

छन्न पकैया छन्न पकैया सोच सोच मुरझाई

उसे छोड़ के देख रहे सब क्या दहेज में लाई

 

छन्न पकैया छन्न पकैया जिसको अपना माना

उसी पिया के आंगन देखो मिलता नही ठिकाना

 

छन्न पकैया छन्न पकैया वो दिन सबसे काला

जब अपनों ने ही उसको दे दी दहेज की ज्वाला

 

छन्न पकैया छन्न पकैया जग आधार बनेगी

इसे संभालो ये ही हमारा नया भविष्य जनेगी

 

छन्न पकैया छन्न पकैया ये समाज अब जागे

माँ न रहेगी कुछ न रहेगा ये मत भूल अभागे

 

छन्न पकैया छन्न पकैया आओ मिल के ठाने

बेटी भी हिस्सा गुलशन का उसको अपना माने

 

 

 

.............................................. अरुन श्री !

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on January 4, 2012 at 9:19pm
वाकई काबिले तारीफ़ है आपकी यह रचना अरुण श्री जी ................ बधाई स्वीकार करें
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 4, 2012 at 4:55pm

वाह वाह वाह भाई अरुण जी, अति सुन्दर...  आनंद आ गया... जिस खूबसूरती से आपके छंद ज्वलंत सामाजिक बिंदु को स्पर्श करते हैं, वह कमाल है.... भाव विहल करते खुबसूरत छन्न पकैया के लिए सादर बधाई स्वीकारें....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2012 at 4:32pm

भाई अरुणजी, इस छंद की परिसीमा में आपने क्या ही हृदय-स्पर्शी विन्दुओं को सफलता से छूआ है ! पारिवारिक और सामाजिक पहलूओं को तो छूआ ही गया है, मनोवैज्ञानिक पहलू का छुआ जाना और उससे जुड़े मुद्दे पर पद्य-विचार ! वाह ! दिल जीत लिया आपने.

सभी द्विपदियाँ कमाल की हैं. 

उदाहराणार्थ -  

छन्न पकैया छन्न पकैया सोच सोच मुरझाई

उसे छोड़ के देख रहे सब क्या दहेज में लाई

इस द्विपदी के माध्यम से जिस दर्द और विवशता को उकेरा गया है इस हेतु मैं आपकी संवेदनशील दृष्टि को हार्दिक बधाई देता हूँ. 

Comment by Abhinav Arun on January 4, 2012 at 4:23pm
आपकी छन्न पकैय्या में vividh samajik vishayon को bakhubi samahit kiya gaya है hardik बधाई arun जी !!
Comment by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 3:02pm

बहोत अच्छी रचना है अरुण भाई

हार्दिक बधाई आपको !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 4, 2012 at 2:51pm

//छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी

सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी//

बहुत खूब अरुण जी, यथार्थ का सटीक चित्रण किया है आपने.

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका

छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका //

यह इस देश का दुर्भाग्य है, बहुत गंभीर विषय चुना है अपने इस छंद का.


//छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर भरमाए

और पराया धन कह कर उसको परदेश पठाए//

वाह वाह वाह .

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया छोड़ा पी का आंगन

नई बहुरिया नव आंगन में ढूंढ रही अपनापन//

लाजवाब - क्या कमाल का मनोविश्लेषण किया है नव विवाहिता का.  

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया सोच सोच मुरझाई

उसे छोड़ के देख रहे सब क्या दहेज में लाई//

भई दिल जीत लिया इस छंद ने तो - क्या ग़ज़ब की बात कह दी - वाह. 

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया जिसको अपना माना

उसी पिया के आंगन देखो मिलता नही ठिकाना//

अति सुंदर.

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया वो दिन सबसे काला

जब अपनों ने ही उसको दे दी दहेज की ज्वाला//

बहुत ही मार्मिक छंद, हमारे समाज को चौराहे पर खड़ा करता हुआ - बहुत खूब. 

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया जग आधार बनेगी

इसे संभालो ये ही हमारा नया भविष्य जनेगी//

ये बात ! बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया, अगर बेटियां ही न रहीं तो दुनिया कैसे चलेगी. 

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया ये समाज अब जागे

माँ न रहेगी कुछ न रहेगा ये मत भूल अभागे//

अति सुंदर विचार और संदेश - वाह

 

//छन्न पकैया छन्न पकैया आओ मिल के ठाने

बेटी भी हिस्सा गुलशन का उसको अपना माने//


बहुत ही सुंदर संदेश. इस सुंदर छन्न पकैयावली के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by mohinichordia on January 4, 2012 at 2:37pm

 छन्न-पैकया का भरपूर मज़ा लिया है आपने अरुण जी .बहुत उम्दा बन पडी है रचना |नई बहुरिया नव-आँगन में ..माँन रहेगी .....बहुत सुन्दर दोहे .|एक से बढ़कर एक हैं | बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service